It is recommended that you update your browser to the latest browser to view this page.

Please update to continue or install another browser.

Update Google Chrome

प्रथम चरण के वोट प्रतिशत में गिरावट से पार्टियों में खलबली
By Lokjeewan Daily - 22-04-2024

नई दिल्ली। प्रथम चरण के चुनाव में कम मतदान से सभी दलों में खलबली है। प्रत्यक्ष तौर पर तो विरोधी खेमे का नुकसान बताया जा रहा है, लेकिन सबक लेकर पर्दे के पीछे से अपने समर्थकों को भी अगले चरण के लिए सतर्क किया जा रहा है। वैसे आम चुनाव में जब भी मतदान ज्यादा होता है तो माना जाता है कि सत्ता के विरुद्ध हवा है। कम मतदान पर कहा जाता है कि वोटरों में सरकार के प्रति उत्साह नहीं है। उदासीनता है। जैसा चल रहा है वैसा ही चलता रहेगा लेकिन भारत में चुनावों का इतिहास बताता है कि कम या ज्यादा मतदान के नतीजे मिले-जुले ही आते रहे हैं। परिवर्तन और यथास्थिति के अनुमान को किसी फॉर्मूले पर नहीं कसा जा सका है। फिर भी गिरते वोट प्रतिशत ने सभी दलों को बेचैन कर दिया है। हार के खतरे का आकलन दोनों तरफ से किया जा रहा है।

एक धारणा और है कि जिस क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय की संख्या अधिक होती है, वहां के बूथों पर वोट ज्यादा बरसता है और दूसरे समुदाय की अधिकता वाले बूथों के वोटर मताधिकार के प्रति लापरवाह या उदासीन रहते हैं। इस बार यह धारणा भी लगभग निर्मूल दिख रहा है। पहले चरण का मतदान बता रहा है कि सभी सीटों पर वोटरों ने बूथों पर जाने से परहेज किया। वहां भी जहां पिछले दो चुनावों से 70 प्रतिशत से ज्यादा वोट पड़ रहे थे, इस बार पांच से दस प्रतिशत तक कम वोट पड़े हैं। ऐसा क्यों हुआ? मतदान में गिरावट से पार्टियों की हार-जीत पर भी असर पड़ सकता है क्या? राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार इससे सहमत नहीं हैं। कहते हैं कि आजादी के बाद कई चुनावों में वोट प्रतिशत में उतार-चढ़ाव के बावजूद कांग्रेस ही सत्ता में बनी रही। कोई ट्रेंड नहीं दिखा। वर्ष 2009 के चुनाव में 58.21 प्रतिशत वोट पड़े थे, जो 2014 में करीब आठ प्रतिशत से ज्यादा बढ़कर 66.44 प्रतिशत हो गया। इसे परिवर्तन की लहर बताया गया, किंतु 2019 के चुनाव में बढ़कर 67.40 प्रतिशत हो गया। फिर भी सरकार नहीं बदली।पहले से ज्यादा सीटों से मोदी सरकार की वापसी हुई। इसी तरह 1999 की तुलना में 2004 में करीब दो प्रतिशत कम वोट पड़े। फिर भी सरकार बदल गई। जाहिर है कि कम या ज्यादा मतदान से हार-जीत का आकलन नहीं किया जा सकता।

जीत की गारंटी से गिरा मतदान

प्रथम चरण के मतदान की समीक्षा तो कई कोण से की जा रही है पर दो तरह की बातें प्रमुखता से आ रही हैं। पहली बात भाजपा को चिंतित करने वाली है तो दूसरी विपक्ष को। भाजपा के चार सौ पार के नारे ने राजग के समर्थकों में अति विश्वास का भाव भर दिया है। कार्यकर्ता यह सोचने लगे हैं कि सरकार तो नरेन्द्र मोदी की ही बननी है। चार सौ नहीं तो कम से कम तीन सौ सीटें तो मिल ही जाएंगी। अपने क्षेत्र के प्रत्याशी की जीत को लेकर भी राजग के वोटर निश्चिंत हो गए हैं कि उनके वोट से क्या बनना-बिगड़ना है।

विपक्षी खेमे में निराशा का भाव

भाजपा एवं उसके सहयोगी दलों के विरुद्ध आगे बढ़कर वोट करने वाले मुस्लिम समुदाय में दो वजहों से उदासीनता आई है। पहला, आबादी के अनुरूप सियासत में हिस्सेदारी देने का भरोसा दिलाने वाले दलों ने उनके साथ नाइंसाफी की है। टिकट वितरण में भेदभाव किया है। अनदेखी के चलते उनमें निराशा का भाव है। दूसरा कारण है कि मुस्लिम वोटरों के जुनून में कमी आना है। भाजपा को हराने के लिए पिछले दो चुनावों में बढ़-चढ़कर वोट डालने के बाद भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिला। उल्टे संसद में भागीदारी कम होती गई। ऐसे में मतदान के प्रति उत्साह कम हुआ है।

 

अन्य सम्बंधित खबरे