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Update Google Chromeब्रेकिंग न्यूज़
जयपुर। अजमेर रोड से सिरसी रोड के बीच की करीब 553 कालोनियों के लोग इस साल फिर रेन वाटर अरेस्ट यानि जलभराव के शिकार होंगे। इसकी वजह है कि जेडीए के अफसरों ने निजी स्वार्थों के चलते ट्रेंचिंग ग्राउंड और ड्रेनेज सिस्टम की योजना को आगे बढ़ाने के बजाय डीपीआर बना रही कंपनी का टेंडर ही एकतरफा कैंसल कर दिया है। वह भी तब जब भाजपा विधायक और उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ इस ड्रीम प्रोजेक्ट की मॉनीटरिंग कर रहे थे। जाहिर, है बारिश के समय फंसने से लोगों में भाजपा सरकार के प्रति गुस्सा और नाराजगी ही बढ़ेगी।
सूत्रों की मानें तो इस क्षेत्र की कॉलोनियों के लोगों को जलभराव की समस्या से निजात दिलाने के लिए डीपीआर बनाने वाली कंपनी याशी कंसल्टिंग सर्विसेज प्रा. लि. ने सर्वे आदि का अपना काम पूरा कर लिया था। इस डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) का तकनीकी परीक्षण भी हो चुका था। जो स्थल निरीक्षण और जमीनी सर्वे के आधार पर होने से पूरी तरह फिजिबल यानि व्यवहारिक थी। लेकिन, जेडीए अफसरों ने निजी स्वार्थों के चलते अचानक फर्म से काम वापस ले लिया। इसलिए यह प्रोजेक्ट अधर में अटक गया है। बता दें कि जेडीए अभी तक 2047 तक का मास्टर प्लान भी लागू नहीं कर पाया है, जबकि मौजूदा मास्टर प्लान इसी साल खत्म हो रहा है। इतना ही नहीं, बीआरटीएस कॉरीडोर भी करीब 300 करोड़ खर्च करने के बाद अब हटाना पड़ रहा है, इसमें भी काफी पैसा खर्च करना पड़ रहा है।
बहरहाल, अजमेर से सिरसी रोड तक जलभराव रोकने की डीपीआर बनाने के मामले में फर्म याशी कंसल्टिंग सर्विसेज का कहना है कि डीपीआर में प्रभावित क्षेत्र को समाविष्ट किया गया था, किंतु निविदा आमंत्रण के समय JDA द्वारा उक्त क्षेत्र को बाहर कर दिया गया, जिससे परियोजना की वास्तविक परिकल्पना और अंतिम जल निकासी बिंदु (ultimate disposal point) अधूरी रह गई। इस कारण से लागत में वृद्धि और कार्य क्षेत्र (scope of work) में अनावश्यक बदलाव की स्थिति उत्पन्न हुई।
याशी कंसल्टिंग के अनुसार, यह जानकारी JDA के अधिकारियों को दी गई थी और प्रस्ताव जेडीए आयुक्त तक भी पहुँचा था, परंतु समाधान निकालने की बजाय निविदा ही निरस्त कर दी गई। इससे फर्म स्वयं अपने साथ धोखा महसूस कर रही है और वह न्याय के लिए अदालत जाने की तैयारी कर रही है। फर्म ने यह भी स्पष्ट किया है कि उसे अब तक इस मद में कोई भी बड़ी राशि प्राप्त नहीं हुई है, बल्कि जो भी कार्य किया गया वह परामर्श सेवा अनुबंध के अंतर्गत ही हुआ है।
याशी कंसल्टिंग का कहना है कि परियोजना की तकनीकी और वित्तीय गहनता को समझे बिना डीपीआर या परामर्शदाता फर्म को दोषी ठहराना न केवल अनुचित है बल्कि इससे भविष्य की योजनाओं पर भी असर पड़ सकता है।
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