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बिटिया की बदलती दुनिया, माता-पिता के लिए चुनौतियां
By Lokjeewan Daily - 16-10-2024

बेटियां भगवान का अनमोल उपहार होती हैं, लेकिन अक्सर माता-पिता के रूप में हम उनकी जरूरतों और भावनाओं को सही तरीके से नहीं समझ पाते। यही गलतफहमी हमारे और हमारी बेटियों के बीच दूरी बढ़ा देती है। यह जरूरी है कि हम अपनी बेटियों के साथ एक मजबूत और समझदारी भरा रिश्ता बनाएं, जो न केवल उनका आत्मविश्वास बढ़ाए बल्कि उन्हें जीवन के हर कदम पर हमारे साथ खड़ा महसूस कराए।
हर बच्चा अलग होता है, और हर बेटी की अपनी विशिष्ट जरूरतें होती हैं। कभी-कभी, वे अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त नहीं कर पाती, और माता-पिता के रूप में हमें उनके मनोविज्ञान को समझना होता है। उनकी जरूरतें सिर्फ भौतिक चीजों तक सीमित नहीं होतीं; उन्हें भावनात्मक समर्थन, समझ, और सच्चे संवाद की भी आवश्यकता होती है।

इन सब चीजों पर आईएएनएस ने एनसीआर में 'होप साइकोलॉजी एंड रिलेशनशिप काउंसलिंग सेंटर' के काउंसलर विवेक वत्स से बातचीत की।

विवेक वत्स ने कहा, "अगर हम बच्चों के विकास की बात करें तो बेटियां स्वाभाविक तौर पर बेटों की तुलना में ज्यादा इमोशनल होती हैं। बेटियों के लिए मां का रोल सोशल डेवलपमेंट को लेकर होता है और पिता लॉजिकली ज्यादा इनपुट डाल पाते हैं। यानी एक बच्ची के व्यक्तित्व का इमोशनल पार्ट मां हैंडल करती है और और प्रैक्टिकल अप्रोच पिता की ओर से आता है। प्रैक्टिकल अप्रोच, यानी रोजमर्रा के जीवन में काम आने वाली स्किल्स, वह पिता की ओर से विकसित कराई जाती है।"

उन्होंने बेटियों की खासियत और जरूरत के बारे में बताते हुए कहा, "बेटियां छोटी उम्र से ही 'लव और अटेंशन' चाहती हैं। इस उम्र में भी वह लड़कों से थोड़ी अलग होती हैं। लड़कों के एग्रेसिव खेल की तुलना में बच्चियों के खेल रचनात्मक होते हैं। इस उम्र में लड़कियों के ऊपर सबसे ज्यादा फर्क पारिवारिक माहौल का पड़ता है। क्योंकि इस उम्र में एक बच्ची अपना अधिकतर समय परिवार के अंदर देता है। अगर बच्चे को डरा-धमकाकर रखा जाएगा, उसके साथ ज्यादा टोका-टाकी की जाएगी तो यह बच्चे के विकास को प्रभावित करेगा, उसके आत्मविश्वास का कम करेगा, कुछ भी करने से पहले बच्ची को लगेगा कि शायद में इसको गलत कर रही हूं।"

यह सब चीजें इस बात की ओर भी इशारा करती हैं कि बेटियों और पैरेंट्स के बीच में संवाद भी कम हो चुका है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए जरूरी हैं कि माता-पिता अपनी बेटी की बातों को जरूर सुनें। संवाद किसी भी रिश्ते की नींव होती है। जब वे अपनी बात कहें, तो हमें उन्हें ध्यान से सुनना चाहिए, बिना किसी रुकावट या जजमेंट के। हालांकि कई बार पैरेंट्स यही पर पहली गलती कर जाते हैं।

इस तथ्य पर प्रकाश डालते हुए विवेक बताते हैं कि, "माता-पिता के तौर पर गलती हमसे यह होती कि हम बेटी को बात को सुनकर उसको सलाह या उपदेश पहले देना शुरू कर देते हैं। जबकि बेटी को ऐसे उपदेश से ज्यादा जरूरत है कि उनकी बातों को सुना जाए। अगर बच्ची की कोई बात सही भी करनी हो तो उसको अच्छे तरीके से करनी चाहिए। आपको बिटिया से बात करते हुए यह जरूर ध्यान में रखना है कि वह भविष्य में अपनी बात आपसे शेयर करेगी या नहीं। ज्यादा टोका-टाकी से बच्चे अगली बार अपनी बात माता-पिता से शेयर करना बंद कर देते हैं।"

इसलिए सुनना बड़ी अहम चीज है। बेटी को बिना किसी रुकावट के सुनें। उसे महसूस कराएं कि आप उसकी बातों को महत्व देते हैं। जब वह अपनी भावनाएं साझा करती है, तो उसे आश्वस्त करें कि आप उसके साथ हैं। बेटी की भावनात्मक जरूरत पूरी करना बेहद अहम है।

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