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चित्तौड़गढ़, राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित ऐतिहासिक विजय स्तंभ को अब छू नहीं सकेंगे। दूर से निहारना पड़ेगा, क्योंकि विजय स्तंभ के पास रेलिंग लगा दी गई है।वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल चित्तौड़ दुर्ग के ऐतिहासिक विजय स्तंभ पर पड़ने वाली दरारों को देखते हुए जहां साल 2020 से पर्यटकों का आवागमन बंद कर दिया था। वहीं, अब इसे बचाने के लिए चारो ओर बैरिकेटिंग कराई गई है। इससे पर्यटक विजय स्तंभ को दूर से ही निहार सकेंगे। अब न तो विजय स्तंभ को छू पाएंगे और न इसके पास में खड़े रहकर फोटो करवा पाएंगे।
बताया जाता है कि विजय स्तंभ में लगातार दरारें बढ़ रही हैं और इसका अस्तित्व खतरे में है। देश में विजय स्तंभ जैसी विशिष्ट धरोहर को बचाने के लिए पुरातत्व विभाग ने कड़ा कदम उठाया है। ऐसे में यहां बेरिकेट्स लगाने का कार्य शुरू हो गया है। पुरातत्व विभाग के अधिकारियों की मौजूदगी में यहां बैरिकेट्स लगाने का कार्य किया जा रहा है, जिससे कि ऐतिहासिक इमारत विजय स्तंभ को कोई नुकसान न पहुंचे।
वैज्ञानिकों ने किया था मुआयना
विजय स्तंभ पर आ रही दरारों को देखने के लिए भारतीय पुरातत्व संरक्षण विभाग की देख-रेख में वैज्ञानिकों की टीम ने इसका मुआयना किया था। पूर्व में विजय स्तंभ पर केमिकल वॉश भी कराया गया था। लेकिन सब कुछ कोशिशें करने के बावजूद विजय स्तंभ की दरारों पर कुछ खास असर नहीं पड़ा है। ऐसे में इसके चारों ओर बैरिकेटिंग कराई जा रही है, ताकि पर्यटक और आम लोग दूर से ही इसके दीदार कर सकें।
मालवा विजय पर हुआ था निर्माण
विजय स्तंभ का निर्माण महाराणा कुंभा ने 1448 में करवाया था। यह निर्माण मालवा पर विजय करने की याद में किया गया था। इसलिए इसका नाम विजय स्तंभ रखा था। विजय स्तंभ की कुल ऊंचाई 122 फीट नौ इंच है। इतिहासकारों के मुताबिक, इसके निर्माण पर 90 लाख रुपये से अधिक की राशि खर्च हुई थी। गौरतलब है कि विजय स्तंभ ऐतिहासिक धरोहर होने के साथ-साथ स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है।
बंदरों से भी है ऐतिहासिक भवन को खतरा
इंसानों के आवागमन और पर्यटकों के छूने पर पुरातत्व विभाग ने रोक लगा दी है। लेकिन इस ऐतिहासिक धरोहर को बंदरों से भी खतरा है। लगातार बंदरों के विजय स्तंभ के ऊपर उछल कूद करने और गंदगी कर देने के कारण यह ऐतिहासिक धरोहर खतरे में है। लेकिन इसके लिए यहां ज्यादा ऊंचाई पर इंतजाम करना फिलहाल संभव नहीं दिख रहा है।
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