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कनाडा की शीर्ष खुफिया एजेंसी कनाडाई सुरक्षा खुफिया सेवा (सीएसआईएस) ने अपनी 2024 की वार्षिक रिपोर्ट में पहली बार आधिकारिक रूप से पुष्टि की है कि कनाडा भारत विरोधी खालिस्तानी चरमपंथियों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह बन गया है।
यह खुलासा भारत द्वारा लंबे समय से की जा रही उस चिंता की पुष्टि करता है, जिसमें नई दिल्ली ने कनाडा पर भारत विरोधी तत्वों को शरण देने का आरोप लगाया था।
सीएसआईएस की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है, "खालिस्तानी चरमपंथी मुख्य रूप से भारत में हिंसा को बढ़ावा देने, धन जुटाने या योजना बनाने के लिए कनाडा को आधार के रूप में उपयोग करना जारी रखे हुए हैं।"
रिपोर्ट में कनाडा स्थित खालिस्तानी चरमपंथियों (सीबीकेई) के एक छोटे लेकिन सक्रिय समूह का उल्लेख किया गया है, जो हिंसक गतिविधियों के माध्यम से भारत के पंजाब में खालिस्तान नामक एक स्वतंत्र राष्ट्र राज्य की स्थापना के लिए प्रयासरत हैं।
सीएसआईएस ने कहा, "1980 के दशक के मध्य से कनाडा में राजनीतिक रूप से प्रेरित हिंसक उग्रवाद (पीएमवीई) का खतरा मुख्य रूप से कनाडा स्थित खालिस्तानी उग्रवादियों (सीबीकेई) के माध्यम से प्रकट हुआ है, जो मुख्य रूप से भारत के पंजाब में खालिस्तान नामक एक स्वतंत्र राष्ट्र राज्य बनाने के लिए हिंसक साधनों का उपयोग और समर्थन करना चाहते हैं।"
यह स्वीकारोक्ति ऐसे समय में भारत और कनाडा के बीच बिगड़ते-संवरते राजनयिक रिश्तों में आया अहम पड़ाव है। 2023 में ब्रिटिश कोलंबिया में खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद दोनों देशों के संबंधों में तीखी तनातनी देखी गई थी। कनाडाई अधिकारियों ने इस हत्या को भारतीय सरकार के हस्तक्षेप से जोड़ा, जिसका भारत ने खंडन करते हुए इन आरोपों को "बेतुका" और "निराधार" बताया था। भारत ने इसके जवाब में कनाडा पर खालिस्तानी चरमपंथियों को पनाह देने और उनकी गतिविधियों को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया। सीएसआईएस की यह रिपोर्ट भारत के इस रुख को मजबूती प्रदान करती है।
प्रधानमंत्री मोदी के दौरे के ठीक बाद यह खुलासा हाल ही में अल्बर्टा में जी-7 शिखर सम्मेलन में कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच हुई बैठक के समय हुआ है।
इस बैठक में दोनों नेताओं ने नए उच्चायुक्तों की नियुक्ति और व्यापार वार्ता को पुनः शुरू करके द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य करने की दिशा में कदम उठाने पर सहमति व्यक्त की।
हालांकि, कनाडा में सिख समर्थकों और कुछ सांसदों ने कार्नी द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को आमंत्रित करने के निर्णय की आलोचना की है। इसके बावजूद, कार्नी ने भारत के वैश्विक आर्थिक महत्व और रचनात्मक वार्ता की आवश्यकता पर जोर देते हुए अपने फैसले का बचाव किया। उन्होंने कहा कि भारत के साथ संबंधों को मजबूत करना कनाडा के राष्ट्रीय हित में है, भले ही कुछ सुरक्षा चिंताएं बरकरार हों।
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