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किसी बड़े पद पर मुस्लिम क्यों नहीं, हिंदू राष्ट्र की अवधारणा में अल्पसंख्यकों की क्या जगह?
By Lokjeewan Daily - 19-04-2024

संघ और मुसलमानों को करीब लाने वाले शख्स इंद्रेश कुमार जी  से विशेष बातचीत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) 2025 में जिसकी उम्र 100 बरस हो जाएगी। इतिहास के पन्नों से गुलाम हिन्दुस्तान की यादों में हिंदुत्व की आस्था से भारतीयता की भावना में रचे-बसे इस संगठन का जन्म तो 99 साल पहले हुआ था। उस वक्त सिर्फ 12 लोग थे लेकिन आज करोड़ों-करोड़ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद संगठन की हामी हैं। आरएसएस का इरादा अखंड भारत का है और संघ का वादा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पन्नों के इर्द-गिर्द ही केंद्रित रहता है। आरएसएस की छवि मुस्लिम विरोधी बनाई गई है, जबकि उसके साथ बड़ी संख्या में मुस्लिम भी जुड़े हुए हैं। इसके लिए संघ का ही एक संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच काम कर रहा है। आरएसएस के कार्यकारिणी सदस्य एवं एमआरएम के मार्गदर्शक इंद्रेश कुमार जी के साथ अभिनय आकाश की खास बातचीत ।

प्रश्न: आख़िर आरएसएस में किसी बड़े पद पर कोई मुसलमान क्यों नहीं?

उत्तर: अब कोई महिलाओं की पार्टी में गया और वहां पूछा कि वहां कोई पुरुष अध्यश्र क्यों नहीं है? तो मजाक ही लगेगा ना। अब मुस्लिम लीग के बारे में अगर पूछ लिया गया कि क्या उसमें कोई गैर मुस्लिम या ईसाई कोई अध्यक्ष है। ईसाईयों की संस्था से जाकर पूछिए कि आपके यहां कोई मुसलमान अध्यक्ष क्यों नहीं बने। आपने मुसलमानों से जाकर पूछा कि आपके यहां कोई बौद्ध, जैन, सिख, राधा स्वामी, निरंकारी क्यों नहीं अध्यक्ष बने। दूसरी बात जब हम कहते हैं मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना। देश के अंदर दुनिया में ये रिवाज क्यों नहीं बनता कि किसी भी मजहब का फेस्विटवल है, उसमें जाना चाहिए। वहां के नियम या कायदा के अनुसार जो भी छोड़ा बहुत पूजा पाठ करना चाहिए, प्रसाद मिलता है तो उसे ग्रहण करना चाहिए। परंतु आज ये प्रश्न खड़ा होता है कि मंदिरों के अंदर कितना मुसलमान जाता है। चर्च में कितना मुसलमान जाता होगा। राधा स्वामी में कितना मुसलमान जाता होगा। गुरुद्वारों में कितना मुसलमान जाता होगा। जब ऐसे प्रश्न खड़ा करेंगे। तो ये भी सवाल उठेंगे। हरेक को लगेगा कि मैं भी जवाबदेह हूं। 

प्रश्न: आरएसएस इस्लाम को किस नजरिए से देखता है?

उत्तर: वसुधैव कुटुंबकम पूरा विश्व एक कुटंब है। इसलिए किसी भी जाती के हैं। किसी भी दल के हैं। किसी भी धर्म-पंत विशेष के हैं। किसी भी भाषा-भूगोल के हैं। हम सब एक ही हैं। वी शुड लीव एज ब्रदर एंड सिस्टर। इस रूप में सबको जीना चाहिए। इस बात को संघ भी मानता है। इसी के साथ साथ दूसरी बात और भी है। भारत की धरती की ये संस्कृति है। इस समाज का ये चरित्र है। वो ये है कि धर्मांतरण नहीं धर्मों का सम्मान। इसलिए जितने भी मत पंत हैं वो सब एक ही ईश्वर की ओर ले जाने का मार्ग है। संघ इस बात को मानता था है और रहेगा कि इस देश के नागरिक की पहचान या दुनिया के अंदर नागरिक की पहचान धर्म, पंथ,जाति से नहीं है। उसकी पहचान उसके वतन से है। जैसे इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, इटली, यूनान यहां से लोग आए हैं तो ये नहीं कहते हैं कि ईसाई प्रोटेस्टेंट आए हैं। यही कहते हैं कि ब्रिटिश आया है, अमेरिकन आया है या यूनानी आया है। इसी तरह अरब, तुर्किस्तान, ईरान, इराक से आने वालों को मुसलमान शिया या सुन्नी कहकर संदर्भित नहीं करते हैं। यही कहते हैं कि अरबी, तुर्की, ईरानी, इराकी है। भारतीय के बारे में भी यही कहते हैं। इसके जरा नाम अधिक हैं। इस धरती को आर्यव्रत से लोग कहते हैं यहां के लोग आर्य हैं। भारत वर्ष से भारतीय कहते हैं। हिंदुस्तान से हिंदुस्तानी कहते हैं। हिंद से हिंदी-हिंदू कहते हैं। इंडिया से इंडियन कहते हैं। ये नाम देश वाचक और राष्ट्र वाचक हैं। भारत के 140 करोड़ लोग हिंदुस्तानी, भारतीय, इंडियन थे हैं और रहेंगे। बाद में हम मुसलमान, हिंदू, सिख, निरंकारी, या कोई और धर्म को मानने वाले हैं। 

प्रश्न: आरएसएस हमेशा हिंदू राष्ट्र की बात करता रहा है। ऐसे में फिर मुसलमानों के लिए इस राष्ट्र में जगह कैसे  बनेगी

उत्तर: ईसाई, जैन, बौद्ध, सिख, राधा स्वामी, रविदास, वाल्मिकी में भी ये खड़ा होता है। सिर्फ मुसलमानों को क्यों चिन्हित किया जाता रहा है। फिर सवाल खड़ा होता है कि देश के अंदर इतने मतपंथ और उपमत भी हैं। उन्हें किसी को भी अपनी पहचान का खतरा नहीं लगता है। इन्हीं को क्यों लगता है। इनको इसलिए लगता है कि उन्हें लोग भड़का कर अलग दिखाकर इस खतरे का अहसास कराते हैं। इस देश के अंदर हम सब 140 करोड़ लोग हिंदुस्तानी, इंडियन, भारतीय थे हैं और सदा रहेंगे। हिंदू नेशन आइडेंटिटी है और मुसलमान रिलीजियस आइडेंटिटी है। हिंदुस्तानी नेशनल आइडेंटिटी है और इस्लाम रिलीजियस आइटेंटिटी है। सारी रिलीजीयस आइटेंटिटी को मिलाकर नेशनल आइटेंटिटी बनती है। अपनी आइडेंटिटी को ठीक रखना और मुसलमानों तक अपनी बातों को ले जाना कि राष्ट्र सर्वोपरि  इसलिए इस्लाम में कहा जाता है हुब्बल वतनी निस्फुल ईमान, वतन से मोहब्बत,  हिफाजत, तरक्की और कुर्बानी ये ऐसा ईमान है कि इस अकेले एक ईमान से जन्नत स्वर्ग प्राप्त होता है। इसलिए मुसलमान को अगर हर वक्त मुसलमान बनाकर रखेंगे तो ये समस्या खड़ी रहेगी। जिस दिन हम मुसलमानों को हिंदुस्तानी बना लेंगे उस दिन ये समस्या अपने आप खत्म हो जाएगी। 

प्रश्न: क्या आरएसएस कोई कदम ले रही है कि उनके समाज की कल्पना की सही छवि लोगों तक पहुंच जाए। वरना संघ के नाम पर नफ़रत फ़ैलाने वालों की कमी नहीं है।

उत्तर: संघ के नाम पर जितनी नफरत फैलाई गई वो घटती घटती जा रही है। अगर आप इसे वोट के पैमाने से देखना चाहते हो तो उसे वैसे भी देख सकते हो। अगर आप इसे समाज के अंदर उसकी प्रतिष्ठा के ऊपर कोई जनमत एकट्ठा करना चाहे तो वो भी कर सकते हैं। लोग समझते हैं कि सबसे अनुशासित पार्टी है। सबसे कैरेक्टरफुल पार्टी है। समाजसेवी पार्टी है। दूसरे का अहित नहीं करती है। छुआछूत मिटाती है। प्रदूषण के खिलाफ काम करती है। उनके रटे रटाए राग हैं गाली दो-गाली दो। ये केवल बहकाने वाली और बांटने वाली राजनीति का दुष्परिणाम है। 

प्रश्न: नफरत और डर जैसी कोई चीज़ नहीं बिकती। चाहे वो खबर हो या राजनीति. सभी लोगों को एक ही चीज़ बेचते हैं। इस माहौल में संघ यह कैसे सुनिश्चित करेगा कि आशा और भाईचारे की उनकी कहानी लोगों के बीच गूंजती रहे। क्या सोशल मीडिया प्रभावितों तक पहुंचने की कोई योजना है? मोदी भी इसके असर को समझ चुके हैं?

उत्तर: मोदी जी पर जितने भी कटाक्ष या प्रहार किए गए। लेकिन मुझे लगता है कि उनकी दिन प्रतिदिन प्रसिद्धी बढ़ती गई। आप यूक्रेन-रूस के युद्ध में देख लीजिए। आज भारत से ये उम्मीद है कि वो मध्स्थता की भूमिका निभाए। भारत की यूक्रेन और रूस से क्या बता की निष्कर्ष ये निकला की तिरंगा उठाओ और पाकिस्तानी भी बचकर आ सकते हैं। कोरोना के अंदर देश के कोरड़ों नागरिकों को और विदेश में खाढ़ा दिलवाया और बाद में वैक्सीन भी दी। पार्टियों ने तो इसे मोदी वैक्सीन बताया। जनता ने उनके मुंह पर चांटा मार दिया। दुनिया ने देखा कि तिरंगा मानवता का प्रतीक है। मोदी ने एक लाइन बोली की जी20 के अंदर अफ्रीकन यूनियन को सदस्य बनाया जाए। 54 देशों की एक यूनियन एक झटके में बिना किसी डॉयलाग के सर्वसम्मित से हां हो गई। इसलिए जो गालियां देने का काम कर रहे हैं उससे उनकी शैतानी और हीनता सामने आ रही है। अपने विचार को जनता तक पहुंचाने के लिए संगठन के अपने रीति-रिवाज भी होते हैं। छोटे-बड़े कार्यक्रम किए जाते हैं। सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंच बनाते हैं। सब रास्ते से विचार को जन जन तल ले जा रहे हैं। ज्वाइन आरएसएस के जरिए भी हमने कुछ साल पहले कार्यक्रम चलाया। ( प्रभासाक्षी से साभार )

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