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उत्तर प्रदेश के हाथरस में मंगलवार को एक सत्संग के समापन के बाद मची भगदड़ में एक सौ इक्कीस लोगों के मरने एवं सैकड़ों लोगों के घायल होने की हृदयविदारक, दुःखद एवं दर्दनाक घटना ने पूरे देश को विचलित किया है। ऐसी घटनाएं न केवल प्रशासन की लापरवाही एवं गैर जिम्मेदारी को उजागर कर रही है बल्कि धर्म के नाम पर पनप रहे आडम्बर, अंधविश्वास एवं पाखण्ड को भी उजागर कर रही है। ऐसी त्रासदियां एवं दिल को दहलाने देने वाली घटनाओं से जुड़े पाखण्डी बाबाओं की कारगुजारियों से हिन्दू धर्म भी बदनाम हो रहा है, जबकि सैकड़ों लोगों की जान लेने वाले बाबा को हिंदू धर्म से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। यह हादसा अनेक सवालों को खड़ा करता है, बड़ा सवाल है कि ऐसे बड़े आयोजन में सुरक्षा उपायों की अनदेखी क्यों होती है? सवाल उठता है कि इतना बड़ा आयोजन बिना पुख्ता इंतजाम के किसकी अनुमति से किया जा रहा था? क्या सुरक्षा मानकों का पालन किया गया? क्या इतने बड़े आयोजन की सुरक्षा का जिम्मा पुलिस-प्रशासन का नहीं होता? क्या आयोजन-स्थल पर निकास द्वार, पानी, हवा, वैकल्पित चिकित्सा एवं चिकित्सक, गर्मी से बचने के पुख्ता इंजताम जरूरी नहीं थे? जवाबदेही तय हो भगदड़ में गयी जानों की। जाहिर है मौतों के बढ़ते आंकड़ों के साथ ही घटना पर लीपापोती की कोशिश भी जमकर होगी, राजनीतिक दल एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते हुए जमकर राजनीति भी करेंगे। यह तय है कि ऐसे बाबाओं की दुकान बिना राजनेताओं के वरदहस्त के चलनी संभव नहीं है।
हाथरस के सिकंदराराऊ के निकट फुलरई के एक खेत में कथित हरि बाबा के एक दिवसीय सत्संग के दौरान यह हादसा हुआ। इस बाबा से जुड़ी बातें विसंगतियों से भरी है। सफ़ेद कोट-पेंट, टाई पहनने वाला यह बाबा कोई पंडित नही है न साधु संत है, यह जूता पहनकर प्रवचन देता था। इस बाबा को कितने वेद पुराण का ज्ञान है? यह किस परंपरा से है? इसके गुरु कौन हैं? ऐसे अनेक प्रश्न है जो बाबा को शक एवं संदेह के घेरे में लेते हैं। इन्हें हिन्दू बाबा कैसे कहा जा सकता है? हिंदू धर्म में ऐसा कहां होता है? यह बाबा पहले पुलिस सेवा में थे और जिनका मैनपुरी में भव्य एवं महलनुमा आश्रम है। घटना के बाद बाबा फरार है। पुलिस उसकी तलाश में जुटी है। भारत में भोली-भाली जनता को ठगने एवं गुमराह करने वाले ऐसे पाखण्डी बाबाओं की बाढ़ आई हुई है। इस तरह की घटनाएं केवल जनहानि का कारण ही नहीं बनतीं, बल्कि देश एवं धर्म की बदनामी भी कराती हैं। इन घटनाओं पर पीड़ितों के प्रति संवेदना व्यक्त करने के बजाए राजनीति करना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है और निंदनीय भी।
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