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संघ प्रमुख का विजयादशमी उद्बोधन 2024- निहितार्थ
By Lokjeewan Daily - 14-10-2024

आज भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का माप, ताप, व्याप, आलाप, अनुलाप इतना है कि संघ के विचार को विश्व के प्रमुख सत्ता केंद्र भी सुनना, समझना और मथना चाहते हैं। संघ क्या कह रहा है? उसकी योजना क्या है? उसका मंतव्य और गंतव्य क्या है? वर्ष भर में दो-तीन ही ऐसे अवसर होते हैं जिनसे यह समझने का प्रयास किया जा सकता है। इस दृष्टि से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर्वोच्च अधिकारी, सरसंघचालक जी का दशहरा उद्बोधन एक महत्वपूर्ण अवसर है। 

इस वर्ष विजयदशमी उत्सव में संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन राव जी भागवत के साथ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. कोपिल्लिल राधाकृष्णन मुख्य अतिथि के रूप में थे। 

 

राष्ट्र में मातृशक्ति की चैतन्यता, जागरण, उत्थान, विमर्श की दृष्टि से संघ लगभग प्रतिवर्ष किसी महत्वपूर्ण नारी व्यक्तित्व को लेकर समाज जागरण करता है। विगत वर्ष इस दृष्टि से हमारी जनजातीय नायक वीरांगना दुर्गावती पर संघ ने अपने वर्ष भर के महिला विमर्श के कार्यक्रमों को केंद्रित किया था। यह वर्ष देश की एक आध्यात्मिक किंतु सर्वोत्कृष्ट शासनकर्ता, लोकमाता, पुण्यश्लोक महारानी अहिल्याबाई का तीन सौवां जन्म जयंती वर्ष है। देश भर में होने वाले अपने कार्यक्रमों को अहिल्या बाई पर केंद्रित करने की दृष्टि से सरसंघचालक जी ने कहा- “देवी अहिल्याबाई एक कुशल राज्य प्रशासक, प्रजाहितदक्ष कर्तव्यपरायण शासक, धर्म संस्कृति व देश की अभिमानी, शीलसंपन्नता का उत्तम आदर्श तथा रण-नीति की उत्कृष्ट समझ रखने वाली राज्यकर्ता थीं”।

 

यह वर्ष भारत हेतु कुप्रथाओं, कुरीतियों से मुक्तिदाता दिलाने वाले आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती जी की 200 वीं जन्म जयन्ती वर्ष भी है। स्वामी दयानंद ने विदेशी आक्रमणों के कारण भारतीय समाज में आ गई सामाजिक व्याधियों का समुचित अध्ययन करके उनसे देश को मुक्ति दिलाने की दिशा में एक बड़ा आध्यात्मिक आंदोलन चलाया था। विदेशी आक्रांताओं के वैचारिक आक्रमण, उनके द्वारा हमारी शिक्षा पद्धति को नष्ट करना, शिक्षण संस्थानों का विध्वंस करना, मतांतरण के माध्यम से समाज को भ्रष्ट करना, समाज में षड्यंत्रपूर्वक जातिगत विभेद उत्पन्न करना जैसी समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिंदू समाज आ गई बुराइयों का उन्मूलन एक बड़ा व महत्वपूर्ण कार्य था; यह कार्य स्वामी दयानंद सरस्वती ने किया।

 

संस्था चाहे कोई भी हो अपने आयोजनों में किसी अन्य संस्था के प्रसंगों को जोड़कर अपनी लाइन छोटी नहीं करना चाहती है। संघ इसके ठीक विपरीत है। संघ, हिंदू समाज के सभी गौरव बिंदुओं में स्वयं को विलीन कर देना चाहता है व इस अनुरूप ही आचरण भी करता है। संघ अपनी सौवीं जयंती में वर्ष भर, बंगाल की ‘सत्संग’ संस्था की सौंवीं जयंती को समूचे देश में अपने कार्यक्रमों, दैनिक स्मरण, आयोजनों, बैठकों, कार्यशालाओं में मनायेगा। ‘सत्संग’ की स्थापना प्रसिद्ध बंगाली महापुरुष अनुकूल चन्द्र ठाकुर ने की थी। 

 

भारत के चारित्र्य मापदंडों को ऊँचा करने, साहित्यिक दृष्टि को विकसित करने, सांस्कृतिक अस्मिता को जीवित रखने, विदेशी आक्रांताओं के कारण समाज में आई ही बुराइयों से समाज को मुक्ति दिलाने में बंगाल का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कभी देश भर में ‘भद्र बंगाल’ माने जाने वाले बंगाल के वैचारिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, राजनैतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक महापुरुषों का स्मरण करने से, समूचे देश के वैचारिक जागरण व पुनरुत्थान की दिशा हमें स्वमेव मिल जाती है। सरसंघचालक जी ने बंगाली नायक परमपुज्य श्री अनुकूल चन्द्र ठाकुर का स्मरण व कृतज्ञता ज्ञापन किया। 

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