It is recommended that you update your browser to the latest browser to view this page.

Please update to continue or install another browser.

Update Google Chrome

ट्रम्प करेंगे बड़ा धमाका, नाटो के अलावा यूएन, आईएमएफ   और वर्ल्ड बैंक से भी बाहर निकलेगा अमेरिका
By Lokjeewan Daily - 05-03-2025

अमेरिका का राष्ट्रपति पद दोबारा संभालने के बाद से डोनाल्ड ट्रंप जिस तरह सरकार के खर्चों को कम करने के लिए एक के बाद एक बड़े कदम उठा रहे हैं उस कड़ी में कुछ और कड़े कदम भी उठाये जा सकते हैं। बताया जा रहा है कि ट्रंप के सहयोगी उनको इस बात के लिए मनाने में सफल होते दिख रहे हैं कि अमेरिका को नाटो और यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक तथा आईएमएफ जैसे संस्थानों से भी बाहर निकल जाना चाहिए। हालांकि ट्रंप कोई भी फैसला करने से पहले तमाम मुद्दों पर विचार कर रहे हैं लेकिन वह इस बात के प्रबल पक्षधर हैं कि उनकी ओर से चलाये गये मागा अभियान के तहत देश को उन गठबंधनों या संस्थाओं से बाहर आना चाहिए जो अमेरिकी हितों का ख्याल नहीं करते हैं।

अमेरिकी अरबपति एलन मस्क जिन्हें अमेरिका के सरकारी खजाने से हो रहे फिजूलखर्च को रोकने के लिए बनाये गये सरकारी दक्षता विभाग (डीओजीई) का प्रमुख बनाया गया है, उन्होंने सोशल मीडिया की जानी मानी हस्ती गुंथर ईगलमैन के उस सुझाव का समर्थन किया है जिन्होंने कहा था: "यह नाटो और संयुक्त राष्ट्र (यूएन) छोड़ने का समय है।" इसके बाद ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक संदेश के साथ रहस्य को और बढ़ा दिया, उन्होंने कहा, "कल की रात बड़ी होगी।'' हम आपको बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति मंगलवार रात को कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करने वाले हैं, जहां उनकी पार्टी के पास दोनों सदनों में बहुमत है।

हम आपको बता दें कि नाटो से बाहर आने के लिए तो अमेरिका में कई सांसदों की ओर से सार्वजनिक रूप से बयान भी दिये जाने लगे हैं। रिपब्लिकन सीनेटर माइक ली ने नाटो को "शीत युद्ध अवशेष" के रूप में वर्णित करते हुए तर्क दिया है कि यह यूरोप को असंगत रूप से लाभ पहुंचाता है। माइक ली काफी समय से नाटो की आलोचना करते रहे हैं। वह कहते रहे हैं कि यह गठबंधन "यूरोप के लिए एक बड़ा सौदा" है लेकिन "अमेरिका के लिए एक कच्चा सौदा" है। उन्होंने हाल ही में एक्स पर लिखा था- "हमें नाटो से बाहर निकालो।" उन्होंने पिछले महीने अन्य सांसदों के साथ मिलकर एक प्रस्ताव पेश किया था जिसमें संयुक्त राष्ट्र से बाहर निकलने का आग्रह किया गया था और इस वैश्विक संस्था को "अत्याचारियों के लिए एक मंच और अमेरिका और उसके सहयोगियों पर हमला करने का स्थान" बताया गया था। इसके अलावा ट्रंप के वफादार माने जाने वाले मार्जोरी टेलर ग्रीन भी नाटो से अमेरिका की वापसी का आह्वान करने वालों में से हैं। हम आपको याद दिला दें कि ट्रंप ने पहले भी धमकी दी थी कि यदि अन्य सदस्य अपने रक्षा खर्च को बढ़ाने में विफल रहे तो नाटो को रूसी बस के नीचे फेंक दिया जाएगा। उन्होंने एक बार चेतावनी देते हुए कहा था, "वास्तव में, मैं उन्हें (रूस को) जो कुछ भी वे करना चाहते हैं उसे करने के लिए प्रोत्साहित करूंगा। आपको भुगतान करना होगा। आपको अपने बिलों का भुगतान करना होगा।" ऐसी ही राय कई अन्य सांसदों, विधायकों ने भी व्यक्त की है। इस तरह देखा जाये तो अब एलन मस्क अमेरिका के नाटो सैन्य गठबंधन से बाहर निकलने के समर्थन में बयान देने वाले अकेले व्यक्ति नहीं रह गये हैं क्योंकि कई रिपब्लिकन सांसदों ने नाटो में अमेरिका की सदस्यता पर सवाल उठाया है, कुछ ने तो इस गठबंधन से तत्काल बाहर निकलने की मांग तेज कर दी है।

इस बीच, यह सवाल उठ रहा है कि क्या अमेरिका नाटो से बाहर निकलने का विकल्प चुन रहा है? दरअसल एलन मस्क द्वारा अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इसके लिए अपना समर्थन साझा करने के बाद हर कोई यही सवाल पूछ रहा है। सवाल यह भी उठ रहा है कि अगर डोनाल्ड ट्रंप ने मस्क की सलाह पर ध्यान दिया तो अमेरिका और दुनिया के लिए इसका क्या मतलब होगा? इन सवालों का जवाब देने से पहले नाटो के बारे में ट्रंप के रुख को समझना जरूरी है। हम आपको बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस सैन्य गठबंधन के आलोचक रहे हैं। जब वह पहली बार राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़े थे तब भी उन्होंने इस गठबंधन को "अप्रचलित" बताया था और अगस्त 2019 में तो उन्होंने यहां तक कहा था कि नाटो मर चुका है। अपने दूसरे कार्यकाल में भी ट्रंप नाटो के आलोचक रहे हैं। पद संभालने के कुछ ही दिनों बाद, ट्रंप ने कहा कि अमेरिका इस गठबंधन के सदस्यों की रक्षा कर रहा था, लेकिन वे "हमारी रक्षा नहीं कर रहे थे।" उन्होंने नाटो सदस्यों को अपने सकल घरेलू उत्पाद का पांच प्रतिशत रक्षा पर खर्च करने के लिए कहा। अभी नाटो सदस्य अपनी जीडीपी का दो प्रतिशत ही रक्षा पर खर्च करते हैं जिससे अमेरिका नाराज है। ट्रंप की शिकायत है कि अमेरिका अपने बजट से नाटो में बहुत अधिक योगदान देता है जबकि यूरोपीय संघ के सदस्य रक्षा पर बहुत कम खर्च करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका नाटो के वार्षिक बजट का लगभग छठा हिस्सा योगदान देता है।

अब सवाल उठता है कि क्या ट्रम्प नाटो और संयुक्त राष्ट्र से हट सकते हैं? इस बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि यदि ट्रंप ऐसा करते हैं तो अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए कानूनी रूप से सिरदर्द पैदा हो जाएगा। दरअसल नाटो से बाहर निकलने के राष्ट्रपति के फैसले के लिए या तो दो-तिहाई सीनेट की मंजूरी होनी चाहिए या फैसले को कांग्रेस के एक अधिनियम के माध्यम से अधिकृत होना चाहिए। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति चाहें तो इस नियम को दरकिनार कर सकते हैं लेकिन यदि उन्होंने ऐसा किया तो उन्हें कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

वहीं संयुक्त राष्ट्र की बात करें तो आपको बता दें कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर एक बाध्यकारी संधि है, जिसमें स्वैच्छिक वापसी का कोई प्रावधान नहीं है। यहां यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि अमेरिका उन पांच देशों में शामिल है जिनको संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो पावर वाली स्थायी सदस्यता हासिल है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अमेरिका वीटो पावर वाली सदस्यता को छोड़ना चाहेगा? सवाल यह भी उठता है कि क्या सदस्यता छोड़ने के बाद यदि अमेरिका पुनः इस विश्व संस्था में लौटा तो उसे आसानी से स्थायी सदस्यता और वीटो शक्ति फिर से मिल पायेगी? हम आपको यह भी बता दें कि संयुक्त राष्ट्र के इतिहास पर नजर डालने से पता चलता है कि मलेशिया के सुरक्षा परिषद में चुने जाने के विरोध में 1965-66 तक संयुक्त राष्ट्र से हटने वाला इंडोनेशिया एकमात्र देश था। हालाँकि, वे 1966 में वापस आ गए थे।

इसके अलावा यदि अमेरिका संयुक्त राष्ट्र से बाहर निकलता है तो इससे इस विश्व निकाय की फंडिंग पर भी असर पड़ेगा क्योंकि अमेरिका ही इस संस्था का सबसे बड़ा योगदानकर्ता है। साथ ही, संयुक्त राष्ट्र से ट्रंप का हटना अमेरिका के उन सिद्धांतों को भी नष्ट कर देगा जिसके चलते अमेरिकी भूमि पर ही इस संस्था की स्थापना की गयी थी। हम आपको यह भी बता दें कि ट्रंप प्रशासन पहले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से हट चुका है, जिसका असर वैश्विक स्वास्थ्य पर पड़ा है।

इसके अलावा, यदि अमेरिका नाटो और संयुक्त राष्ट्र से बाहर आ जाता है तो इसके प्रभाव स्वरूप यूरोप तुरंत संभावित रूसी हमले के निशाने पर आ जायेगा। इसके अलावा यूक्रेन के लिए रक्षा आपूर्ति पूरी तरह ख़त्म हो जाएगी और उसके समक्ष रूस के साथ संघर्षविराम की स्थिति नहीं बल्कि आत्मसमर्पण की परिस्थिति होगी। इसके अलावा, अमेरिका के नाटो छोड़ने की संभावना कई यूरोपीय देशों को अपने सैन्य संसाधनों पर बेशुमार खर्च बढ़ाने के लिए मजबूर कर देगी। वहीं, यदि अमेरिका ने नाटो को छोड़ दिया तो इससे अमेरिका को यह नुकसान होगा कि यूरोप, अफ्रीका या पश्चिम एशिया में उसकी उपस्थिति नहीं रहेगी और दुनिया भर में कई सैन्य अड्डों तक उसकी पहुँच खत्म हो सकती है। इससे अमेरिका को यह भी नुकसान होगा कि कई देश रूस या चीन के करीब आ जायेंगे।

बहरहाल, देखना होगा कि अपने सहयोगियों के सुझावों पर ट्रंप क्या फैसला लेते हैं। लेकिन एक चीज तो स्पष्ट है कि यदि अमेरिका नाटो, संयुक्त राष्ट्र, आईएमएफ या विश्व बैंक से बाहर निकलता है तो वह निश्चित रूप से वैश्विक मामलों पर अपनी पकड़ खो देगा और चीन को सशक्त बना देगा। वैश्विक संस्थाओं से अमेरिका की वापसी तमाम देशों को चीन की कक्षा में धकेल देगी, जिससे दुनिया में अमेरिका की बादशाहत कम हो जायेगी। हाँ, ट्रंप के इन कदमों से अमेरिका को यह फायदा जरूर होगा कि उसके पैसे काफी बच जाएंगे। लेकिन सवाल उठता है कि क्या पैसे बचाने के लिए दुनिया का बॉस समझा जाने वाला देश अलग-थलग पड़ जाने का रिस्क उठायेगा?

-नीरज कुमार दुबे

अन्य सम्बंधित खबरे