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विकासशील देशों पर नए अमेरिकी 'टैरिफ़' मत थोपिए: यूएन व्यापार प्रमुख
By Lokjeewan Daily - 16-04-2025

आयात शुल्क (टैरिफ़) थोपे जाने की ख़बरों से विश्व बाज़ारों व व्यापार जगत में बड़ी उथल-पुथल मची है और आशंकाएँ व अनिश्चितताएँ गहरा रही हैं. इस पृष्ठभूमि में, संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास एजेंसी (UNCTAD) की प्रमुख रेबेका ग्रीनस्पैन ने यूएन न्यूज़ के साथ एक बातचीत में बताया कि उन निर्धनतम देशों को इन शुल्कों से छूट दी जानी चाहिए, जिनकी गतिविधियों का व्यापार घाटे पर मामूली असर ही है. संयुक्त राष्ट्र ने चिन्ता जताई है कि व्यापार क्षेत्र में पसरी अनिश्चितता का उन अर्थव्यवस्थाओं पर असर हो सकता है जोकि पहले से ही सम्वेदनशील हालात का सामना कर रही हैं.इससे पहले, यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने मंगलवार को कहा था कि "व्यापार युद्ध बेहद नकारात्मक हैं," और उनके भयावह नतीजे सामने आ सकते हैं. टैरिफ़ किसी देश में आने वाले आयात पर लगाया जाने वाला कर (tax) है, जिसका भुगतान आमतौर पर निर्यातक को करना होता है. यह सामान के मूल्य के प्रतिशत के रूप में लिया जाता है. यानि, एक अतिरिक्त क़ीमत, जिससे सामान महंगा होता है और इसे फिर आमतौर पर उपभोक्ता द्वारा चुकाया जाता है.UNCTAD की शीर्ष अधिकारी ने गुरूवार को फ़ाइनेंशियल टाइम्स में प्रकाशित एक साक्षात्कार में, अमेरिका से अपनी रणनीति पर दोबारा विचार करने की अपील की. उन्होंने कहा कि ऐसे 44 सबसे कम विकसित देश हैं, जिनका योगदान अमेरिका के व्यापार घाटे में दो प्रतिशत से भी कम है. अधिक टैरिफ़ थोपे जाने से उनका मौजूदा ऋण संकट और भी बदतर हो जाएगा. रेबेका ग्रीनस्पैन ने यूएन न्यूज़ को बताया कि UNCTAD द्वारा विकासशील देशों को कई प्रकार से सहयोग मुहैया कराया जा रहा है. साथ ही, उन्होंने क्षेत्रीय व्यापार सम्बन्धों को और भी मज़बूत बनाए जाने की वकालत की, जिससे इन देशों को अन्तरराष्ट्रीय व्यापार वार्ता में अपना पक्ष मज़बूती से सामने रखने में मदद मिलेगी.इस इंटरव्यू को संक्षिप्तता व स्पष्टता के लिए सम्पादित किया गया है.यूएन न्यूज़: दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन, एक दूसरे पर भारी व्यापार शुल्क थोपने या उसकी धमकी देने की प्रक्रिया में हैं. आपके अनुसार, ये हमारे लिए कितनी बड़ी चिन्ता का विषय है?रेबेका ग्रीनस्पैन: जब दो मुख्य वैश्विक अर्थव्यवस्थाएँ शुल्क लगाती हैं, तो इसका असर सिर्फ़ टैरिफ़ युद्ध में शामिल अर्थव्यवस्थाओं पर ही नहीं, बल्कि हर किसी पर पड़ता है. हम पहले से ही कम विकास और ऊँचे कर्ज़ के "नए सामान्य" हालात का सामना कर रहे हैं, और हम चिन्तित हैं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की गति धीमी हो जाएगी. हमारा ध्यान सम्वेदनशील हालात से जूझ रहे देशों पर इससे होने वाले प्रभावों पर है, जिनमें सबसे कम विकसित देश और लघु द्वीपीय विकासशील देश शामिल हैं. उन देशों के साथ जो हो रहा है, वह वास्तव में हमें चिन्तित करता है. © ADB/Deng Jia चीन के आंतरिक मंगोलिया में एक कारखाना (फ़ाइल) यूएन न्यूज़: कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह युद्ध के बाद बनाई गई अन्तरराष्ट्रीय व्यवस्था का अन्त हो सकता है. क्या ये आशंकाएँ वाजिब हैं?रेबेका ग्रीनस्पैन: हम अब भी यह नहीं जानते कि यह कहाँ ख़त्म होगा. हम लोगों को यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि वास्तव में क्या हो रहा है और क्या कुछ ऐसा है, जिसकी केवल अभी सिर्फ़ बात ही हो रही है.इसका सबसे अहम बिन्दु है, अनिश्चितता की समस्या. अगर हमें अन्तिम स्थिति का पता हो, तो हम उसके हिसाब से क़दम उठाएंगे, हमारे पास रणनीतियाँ होंगी और हम यह समझ बना पाएंगे कि इन निर्णयों के साथ किस तरह जीना है. लेकिन अगर यह अनिश्चितता लम्बे समय तक बनी रहती है, जहाँ स्थिति हर समय बदल रही हो, तो ये नुक़सानदेह है क्योंकि फ़िर हम नहीं जानते कि क्या करना है. निवेश हो नहीं पा रहा है, क्योंकि शीर्ष अधिकारी अभी बैठक कर प्रतीक्षा ही कर रहे हैं, यानी निवेश अभी उस स्तर पर नहीं होगा, जिसकी दुनिया को ज़रूरत है.हमारा पहला अनुरोध तर्कसंगत निर्णय लेने का है, ताकि हम योजना बना सकें, रणनीति बना सकें और बदलाव के अनुसार ढल सकें. लेकिन हम अब भी नहीं जानते कि वो बदलाव कैसा होगा.यूएन न्यूज़: आपने अमेरिकी प्रशासन द्वारा की गई टैरिफ़ वृद्धि से निर्धन देशों को छूट देने का आग्रह किया है. क्या आपकी चिन्ताओं पर ध्यान दिया जा रहा है?रेबेका ग्रीनस्पैन: हमने जो विश्लेषण किया है, वैसा मैंने कहीं और नहीं देखा है, जो यह साबित करता है कि ये देश वास्तव में अमेरिकी व्यापार घाटे में कोई योगदान नहीं दे रहे हैं. अमेरिका को भेजे जाने वाले अधिकांश निर्यात में वस्तुएँ (commodities) हैं और इनमें से कई पर नए नियमों के तहत टैरिफ़ भी नहीं लगा है. ये वस्तुएँ अमेरिका के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं करती हैं, बल्कि वे उत्पादन प्रक्रियाओं में मदद करती हैं.मेरे कहने का मतलब है कि ऐसे कई देश हैं जो वास्तव में [व्यापार] घाटे में योगदान नहीं देते हैं, और राजस्व (टैरिफ़ से मिलने वाली धनराशि) के नज़रिये से महत्वपूर्ण नहीं हैं. न ही वे अमेरिका के लिए प्रतिस्पर्धा या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं.तो, शायद हम नए द्विपक्षीय समझौतों और वार्ताएँ शुरू करने से बच सकते हैं और इन देशों को टैरिफ़ की पीड़ा से बचा सकते हैं. ILO Asia-Pacific वियत नाम की एक फ़ैक्ट्री में महिला कर्मचारी जैकेट बनाने में जुटी हैं. यूएन न्यूज़: वियतनाम या मेडागास्कर जैसे विकासशील देश में विनिर्माण (manufacturing) क्षेत्र के किसी कामगार के लिए आपकी क्या सलाह है?रेबेका ग्रीनस्पैन: यह कहना मुश्किल है, क्योंकि कुछ देशों पर दूसरों की तुलना में ज़्यादा टैरिफ़ लगाए गए हैं, और इसलिए आपको नहीं पता कि इसका किस तरह से प्रतिस्पर्धात्मक असर होगा.हम जो बात कर रहे हैं, मेडागास्कर इसका एक अच्छा उदाहरण है, क्योंकि वहाँ से मुख्य रूप से अमेरिका को वनिला निर्यात की जाती है. अमेरिका के व्यापार घाटे में उनका योगदान इतना कम है कि यह दर्ज भी नहीं किया जाता है, इसलिए इस तरह से देश को दंडित करने का कोई अर्थ नहीं है.यूएन न्यूज़: विकासशील देशों को समर्थन देने में UNCTAD की क्या भूमिका है?रेबेका ग्रीनस्पैन: एक संगठन के रूप में, हम विकास के दृष्टिकोण से व्यापार, निवेश, वित्त पोषण और प्रौद्योगिकी का विश्लेषण करते हैं, यानी हम देशों को व्यापार के अवसरों का लाभ उठाने में मदद करते हैं.हम व्यापार वार्ताओं में शामिल नहीं हैं. ये विश्व व्यापार संगठन में होती हैं, लेकिन हम विकासशील देशों को बेहतर व्यापार शर्तें पाने में और वैश्विक स्तर पर उनकी अर्थव्यवस्थाओं के बेहतर प्रदर्शन करने में मदद करेंगे. यूएन न्यूज़: आपने विकासशील देशों के क्षेत्रीय ब्लॉक के भीतर अधिक व्यापार करने की वकालत की है, जहाँ वे धनी देशों के साथ वार्ताओं में पुख़्ता ढंग से अपनी बात रख सकें. क्या यह इस तरह की स्थिति में उपयोगी होगा?रेबेका ग्रीनस्पैन: अफ़्रीका के पास अफ़्रीकी मुक्त व्यापार क्षेत्र के साथ एक बहुत बड़ा अवसर है. हमारे आँकड़ों के अनुसार, इससे अफ़्रीकी अर्थव्यवस्था में लगभग 3 ट्रिलियन डॉलर जुड़ सकते हैं

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