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नगरीय निकायों का अनुदान बंद : भ्रष्टाचार, अफसरों और नेताओं की कार्यशैली का परिणाम
By Lokjeewan Daily - 14-09-2024

भारत सरकार ने राजस्थान के कई नगरीय निकायों को मिलने वाली ग्रांट बंद कर दी है। क्योंकि भ्रष्टाचार, नेताओं और अफसरों की गलत कार्यशैली की वजह से ये नगरीय निकाय अपने रेवेन्यू सोर्स नहीं बढ़ा पाए। इसकी वजह से अब इन निकायों को चलाने का आर्थिक बोझ राज्य सरकार पर ही आएगा।
बता दें कि 15वें वित्त आयोग की सिफारिशें वर्ष 2022 से लागू की जानी थी, जिसमें राज्य की 245 नगर निकायों को निर्देशित किया गया था कि यदि वे यूडी टैक्स (अर्बन डेवलपमेंट टैक्स) में बढ़ोतरी नहीं करेंगे तो उनकी केंद्रीय ग्रांट बंद हो जाएगी। इसके बावजूद राज्य के ज्यादातर निकायों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। करीब 20 बार स्मरण पत्र भेजे गए, चार्जशीट दी गईं, जिम्मेदारी ठहराने के आदेश जारी किए गए, लेकिन सभी दस्तावेज बेकार साबित हुए और रद्दी की टोकरी में डाल दिए गए।
जयपुर, जोधपुर, कोटा, उदयपुर, भरतपुर, अलवर और कोटपूतली जैसे प्रमुख नगर निकायों में यूडी टैक्स संग्रहण का कार्य निजी एजेंसियों को दिया गया, जहां इन एजेंसियों को कार्य करने की पूरी स्वतंत्रता थी। इसका परिणाम यह हुआ कि टैक्स संग्रहण में चार से पांच गुना की वृद्धि दर्ज की गई। कोटपूतली में टैक्स संग्रहण 10 लाख से बढ़कर सीधे 1.50 करोड़ हो गया। भरतपुर में एक करोड़ से बढ़कर 5 करोड़, और जोधपुर में 10 करोड़ से 20 करोड़ रुपए तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
जोधपुर का उदाहरण: कांग्रेस शासन में ढील, टैक्स वसूली पर ध्यान नहींः
जोधपुर, में जहां पूर्व मुख्यमंत्री का शहर होने के कारण कांग्रेस शासन में यूडी टैक्स पर कभी ध्यान नहीं दिया गया, वहां अब भी स्थिति ज्यों की त्यों है। यहां तो टैक्स नोटिस तक का वितरण ही रोक दिया गया है। गत 15 वर्षों से यहां ओसवाल कंपनी जो टैक्स सर्वेक्षण का कार्य देख रही थी, उसके पास हर साल सर्वे करने का अनुबंध था। लेकिन, 2007 के बाद इस फर्म ने कभी सर्वे ही नहीं किया। नतीजतन, पिछले 15 वर्षों में केवल 5 से 7 प्रतिशत संपत्ति मालिकों ने ही टैक्स देने में रुचि दिखाई।
ओसवाल कंपनी को जयपुर, जोधपुर, कोटा, उदयपुर सभी शहरों का सर्वे 2005 से केवल 3 साल तक करना था। जिसे बढ़ाकर 15 साल तक बिना काम के भुगतान होता रहा। परंतु जोधपुर नगर निगम द्वारा हाल ही में सभी कर युक्त संपत्तियों को जियो-टैग कर उन्हें टैक्स के दायरे में लाया जा चुका है, परंतु अभी राजनीतिक मंशा न होने की वजह से इसे लागू करने में बाधा कर रही है। ओसवाल कंपनी की ढिलाई के चलते पुराने रिकार्ड में प्रॉपर्टी मिल ही नहीं रही।
मजबूरन नगर निगम ने राज्य सरकार के आदेश से नए सर्वे में सभी प्रॉपर्टी मालिकों को साल 2007 से ही विकास कर के टैक्स नोटिस बांटे जाने का निर्णय लिया है। इसमें जो लोग पूर्व में टैक्स जमा करवा चुके हैं उसे तत्काल समायोजित किया जा रहा है। यह स्थिति केवल जोधपुर की नहीं है, बल्कि राजस्थान के अधिकांश नगरीय निकायों की है।
राजनीतिक हस्तक्षेप और वोट बैंक की राजनीतिः
कांग्रेस शासन के दौरान यूडी टैक्स को हमेशा वोट बैंक नुकसान के आधार पर देखा गया। बड़े-बड़े होटल, रिसोर्ट, रेस्टोरेंट जो करोड़ों रुपए की आमदनी का स्रोत हैं, उन्हें औद्योगिक इकाइयों में डालकर टैक्स से छूट दी गई, जबकि छोटी दुकान या मकान वाले लोग टैक्स भरने को मजबूर हैं। यह न केवल भेदभावपूर्ण है बल्कि निकायों की आर्थिक स्थिति की कमर तोड़ चुका है। राजस्थान पर्यटन विभाग द्वारा 18 मई 2022 को जारी एक आदेश ने निकायों की आर्थिक स्थिति को और भी दयनीय बना दिया गया। क्योंकि इसके तहत बड़े-बड़े होटल, रिसॉर्ट्स, रीको क्षेत्र की बड़ी बड़ी औद्यौगिक इकाइयां टैक्स देने से मुक्त हो गए, जबकि छोटे व्यापारियों पर टैक्स का बोझ बढ़ गया।
ज्यादातर नगरीय निकाय अमरुत योजना, एडीबी, हुडको जैसी संस्थाओं से ऋण के बोझ तले दबे हैं। यूडी टैक्स को लेकर राज्य सरकार की उदासीनता और राजनीतिक हस्तक्षेप ने इन निकायों की आर्थिक स्थिति को बद से बदतर बना दिया है। हरियाणा, गुजरात, यूपी और गोवा जैसे राज्यों में संपत्ति टैक्स पर कोई छूट नहीं दी जाती, जबकि राजस्थान में 85 प्रतिशत संपत्तियां यूडी टैक्स के दायरे से बाहर हैं। यदि अन्य राज्यों वाला मॉडल बिना राजनीतिक हस्तक्षेप के अपनाया जाए, तो निकायों की आर्थिक स्थिति को बेहतर किया जा सकता है।

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