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वर्तमान राजस्थान सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए देश का सबसे कड़ा धर्मांतरण विरोधी कानून लागू किया है। “विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधेयक–2025” न केवल कानूनी दृष्टि से मजबूत है, बल्कि सामाजिक और संवैधानिक स्तर पर भी यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बनकर उभरा है।
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सरकार ने दृढ़ता और स्पष्टता के साथ इसे आगे बढ़ाया है। इससे स्पष्ट है कि राजस्थान अब छल, लालच, दबाव या विदेशी फंडिंग के सहारे कमजोर तबकों का धर्म परिवर्तन कराने वाली गतिविधियों के प्रति अत्यंत सख्त है। भारतीय संविधान ने हर नागरिक को अपनी आस्था का अधिकार दिया है, लेकिन यह अधिकार पूरी तरह निरंकुश नहीं है। यह सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और सामाजिक शांति के दायरे में ही मान्य है। इसी संवैधानिक मूल भावना के अनुरूप राजस्थान का नया कानून तैयार किया गया है। इसकी शक्ति और कठोरता इसे सभी राज्यों से अलग बनाती है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस कानून में सजा का प्रावधान देश में सबसे अधिक कठोर है। जबरन या धोखे से धर्मांतरण कराने पर सीधे 7 से 14 वर्ष की सजा तय की गई है। यदि नाबालिग, महिला, दिव्यांग अथवा अनुसूचित जाति-जनजाति के व्यक्ति को निशाना बनाया गया है तो सजा 20 वर्ष तक जा सकती है। सामूहिक धर्मांतरण के मामलों में तो आजीवन कारावास का प्रावधान देश में पहली बार किया गया है। विदेशी फंडिंग का दुरुपयोग करने वालों की संपत्ति जब्त की जा सकेगी और सजा भी अत्यंत कठोर होगी। विवाह के बहाने धर्मांतरण करने वालों के खिलाफ न्यायालय ऐसी शादी को अमान्य घोषित कर सकेगा। इन प्रावधानों ने यह विधेयक वास्तव में देश का सबसे प्रभावशाली और सबसे कठोर धर्मांतरण रोकने वाला कानून बना दिया है।
राजस्थान के संवेदनशील और जनजातीय क्षेत्रों में लंबे समय से धर्मांतरण की शिकायतें आती रही हैं। बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, प्रतापगढ़ और अलवर जैसे जिलों में प्रलोभन, आर्थिक सहायता या सेवा की आड़ में जनजातीय समुदायों को प्रभावित करने के प्रयास कई बार उजागर हुए। समाज की यही पीड़ा आज एक मजबूत कानून के रूप में सामने आई है। सरकार ने स्पष्ट संदेश दिया है कि सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक अस्मिता के साथ खिलवाड़ को अब किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
इस कानून की खासियत यह है कि यह केवल सख्ती के सहारे काम नहीं करता, बल्कि पारदर्शिता को भी पूरा महत्व देता है। यदि कोई व्यक्ति सचमुच अपनी इच्छा से धर्म बदलना चाहता है, तो उसे 90 दिन पहले जिला मजिस्ट्रेट को सूचना देनी होगी। धर्मगुरु को भी 60 दिन पहले नोटिस देना अनिवार्य है। पूरी प्रक्रिया सार्वजनिक होगी और यदि कोई आपत्ति आती है, तो उसका निस्तारण होने के बाद ही धर्म परिवर्तन मान्य माना जाएगा। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि धर्मांतरण स्वतंत्र निर्णय से हो, न कि किसी छिपे हुए दबाव या प्रलोभन की वजह से। इसी के साथ “घर वापसी” को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है, ताकि कोई व्यक्ति अपनी पुरानी आस्था में सुगमता से लौट सके।
विधेयक को लेकर कुछ विरोधी दल इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अंकुश बताते हैं। लेकिन यह तर्क तब कमजोर पड़ जाता है, जब हम देखते हैं कि कानून का उद्देश्य स्वतंत्रता को सीमित करना नहीं, बल्कि उसे सुरक्षित रखना है। यदि धर्मांतरण वास्तव में स्वैच्छिक है, तो कानून में निर्धारित प्रक्रिया उसका सम्मान करती है और उसे वैधता प्रदान करती है। लेकिन यदि किसी की स्वतंत्रता खरीदी, दबाई या डराई जा रही है, तो उसे रोकना राज्य का संवैधानिक दायित्व है। देश के कई राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून पहले से लागू हैं, लेकिन राजस्थान का यह कानून अपनी कठोरता, स्पष्टता और व्यापकता के कारण उनसे कहीं आगे है।
यहां सामूहिक धर्मांतरण पर आजीवन कारावास का प्रावधान, विदेशी फंडिंग के दुरुपयोग पर कड़ी सजा, विवाह-आधारित धर्मांतरण की वैधता की जांच आदि इसे देश का सबसे शक्तिशाली कानून बनाते हैं। यह स्पष्ट है कि राजस्थान ने केवल कानून नहीं बनाया, बल्कि एक राष्ट्रव्यापी मानक स्थापित किया है। इस कानून से सामाजिक और प्रशासनिक स्तर पर कई सकारात्मक परिणाम दिखाई देंगे। कमजोर समुदाय अब भय और लालच के दबाव में आने से बचेंगे। विदेशी फंडिंग का दुरुपयोग रोका जा सकेगा। जनजातीय क्षेत्रों में धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिशें विफल होंगी।
समाज में कृत्रिम विभाजन कम होंगे और सौहार्द बढ़ेगा। साथ ही, स्वैच्छिक धर्म परिवर्तन को अब एक स्पष्ट, सुरक्षित और निष्पक्ष प्रक्रिया मिलेगी। निस्संदेह, “विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधेयक–2025” राजस्थान की सामाजिक दृढ़ता, राजनीतिक इच्छाशक्ति और संवैधानिक संतुलन का अद्भुत उदाहरण है। यह देशवासियों को यह विश्वास दिलाता है कि हमारी सांस्कृतिक जड़ों, हमारी एकता और कमजोर वर्गों की सुरक्षा के लिए राज्य पूरी जिम्मेदारी निभा रहा है।
राजस्थान ने इस कानून के माध्यम से यह साबित कर दिया है कि लोकतंत्र में स्वतंत्रता उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी उसकी रक्षा। और जब बात समाज की बुनियाद, उसकी आस्था और उसकी अस्मिता की हो, तब राज्य का हस्तक्षेप केवल उचित ही नहीं, बल्कि अनिवार्य हो जाता है। यह कानून आने वाले वर्षों में राजस्थान ही नहीं, पूरे देश की सामाजिक संरचना को एक नए संतुलन की ओर ले जाएगा। यही इसकी सबसे बड़ी ऐतिहासिक उपलब्धि है।
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