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पीएम मोदी के भारत की संप्रभु शक्ति : नए औपनिवेशिक स्वामियों के खिलाफ अडिग संघर्ष
By Lokjeewan Daily - 19-11-2024

दिल्ली । भारत अपनी विशाल राजनैतिक अस्मिता और सांस्कृतिक-सभ्यतागत गहराई के साथ, सदियों से बाहरी दबावों और आंतरिक प्रतिरोधों के चौराहे पर खड़ा रहा है । हाल के दिनों में भारत और पश्चिमी शक्तियों, विशेष रूप से अमेरिका और कनाडा के बीच जो कूटनीतिक तनाव उभरा है, वह मात्र साधारण घटनाएं नहीं हैं। ये घटनाएं पश्चिमी शक्तियों द्वारा भारत की स्वतंत्रता को कमजोर करने और उसके वैश्विक शक्ति के रूप में उभरने को बाधित करने की एक सुनियोजित सोची-समझी चाल का हिस्सा है।
पिछले कुछ दशकों से, पश्चिमी समूह ने भारत को न केवल दक्षिण एशिया में एक महत्वपर्ण खिलाड़ी के रूप में देखा है, बल्कि वैश्विक भू-राजनीति में एक संभावित प्रतिद्वंद्वी के रूप में भी देखा है। ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन ने भारत को राजनीतिक रूप से विभाजित और आर्थिक रूप से निर्भर रखने के लिए योजनाएं बनाई थीं। आज, आधुनिक औपनिवेशिक शक्तिया अमेरिका के नेतत्व में और भी परिष्कृत तरीकों का उपयोग कर रही हैं, जैसे कि कूटनीतिक दबाव, आर्थिक प्रतिबंध, और गुप्त अभियान।

"सत्यं वद धर्मं चर स्वाध्यायान्मा प्रमदः।" तैत्तिरीय उपनिषद, 11.1 का उपर्युक्त श्लोक सत्य और धर्म के प्रति अडिग रहने का महत्व दर्शाता है , जो कि भारत की रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने के लिए अनिवार्य है। सत्य और धर्म की राह पर चलना भारत को पश्चिमी दबावों से मक्त रखने का मार्ग है। हाल में भारत और कनाडा के बीच अलगाववादी नेता की हत्या के आरोपों पर जो तनाव उत्पन्न हुआ है, वह मात्र एक कूटनीतिक झगड़ा नहीं है, बल्कि यह अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा भारत को राजनीतिक रूप से घेरने की एक बहुत बड़ी चाल है। कनाडा, पश्चिमी प्रभाव में आकर, भारत के खिलाफ बढ़ाचढ़ा कर आरोप लगा रहा है ताकि राष्ट्र की कूटनीतिक अखंडता पर संदेह उत्पन्न हो। इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि भारत के भीतर घरेलू दलाल जैसे प्रताप भानु मेहता और सिद्धार्थ वरदराजन इस पश्चिमी एजेंडे का समर्थन कर रहे हैं। ये बौद्धिक वर्ग पश्चिमी हितों के पक्षधर होते हुए, एक ऐसा विरोधी नैरेटिव बना रहे हैं जो भारत की सरकार को कमजोर करता है और उसे विश्व मंच पर आक्रामक दिखाने का प्रयास करता है ।

घरेलू आलोचकों की भूमिका और सरकार-विरोधी नैरेटिव- ये विदेशी आकाओं के दलाल जो स्वयं को स्वतंत्र और न्यायपूर्ण सोचने वाले बताते हैं, वास्तव में एक बड़े विरोधी मानसिकता का हिस्सा हैं, जिसका लक्ष्य भारतीय सरकार को कमजोर करना है । इनकी रणनीति छोटी-छोटी कूटनीतिक घटनाओं को राष्ट्रीय संकट की तरह दिखाना है जैसे कि, प्रताप भानु मेहता द्वारा भारतीय सरकार से अपने कथित गुप्त अभियानों पर "साफ-साफ" बोलने की मांग केवल पारदर्शिता के नाम पर नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा को कमजोर करने का प्रयास है। सामान्य भारतीय नागरिक जानते हैं कि यदि कोई गुप्त अभियान हुआ भी है, तो वह राष्ट्रहित में था।

"रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई।" रामचरितमानस, बालकाण्ड 30.4 का यह दोहा उस सिद्धांत की पष्टि करता है कि राष्ट्र को अपने कर्तव्य और प्रतिज्ञा पर अडिग रहना चाहिए। भारत की संप्रभुता की रक्षा के लिए भी यही दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। महुआ मोइत्रा और सागरिका घोष जैसे विपक्ष के सदस्य इस मद्दे को जरूरत से ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रहे हैं, मानो देश एक राष्ट्रीय आपदा से गुजर रहा हो। इनका लक्ष्य स्पष्ट है : एक झूठी कहानी तैयार करना, जो केंद्र सरकार को कमजोर करता है। परंतु इसके विपरीत, भारतीय जनता में देशभक्ति की भावना और मजबूत हो गई है।

पश्चिमी शक्तियों द्वारा भारत पर दबाव डालने की रणनीति नई नहीं है। भारत के राजनीतिक इतिहास को देखें तो यह स्पष्ट होता है कि अमेरिका ने अक्सर भारत को अपने भू- राजनीतिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए मोहरा बनाने का प्रयास किया है। शीत यद्ध के दौरान, अमेरिका ने भारत को अपने पक्ष में करने का भरसक प्रयास किया, परंतु पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी जैसे नेताओं ने इन कोशिशों का दृढ़ता से विरोध किया। उन्होंने रणनीतिक स्वतंत्रता के सिद्धांत का पालन करते हुए गुट-निरपेक्ष आंदोलन का नेतत्व किया। भारत ने 1971 में बांग्लादेश के निर्माण में जो भूमिका निभाई, वह अमेरिका समर्थित पाकिस्तान को एक भारी झटका था। अमेरिका की नाराजगी के बावजूद, भारत की निर्णायक सैन्य कार्रवाई ने एक नए राष्ट्र को जन्म दिया और उसे क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित किया।

आज अमेरिका जिस खेल को खेल रहा है, वह शीत यद्ध के समय की रणनीति का ही आधुनिक संस्करण है। मोदी सरकार द्वारा रूस-यक्रेन संघर्ष में पश्चिमी दबावों के सामने झुकने से इंकार करने के बाद भारत ने खुद को पश्चिमी प्रभाव से दुर कर लिया है। पश्चिम, विशेषकर अमेरिका एक स्थिर भारतीय सरकार को स्वीकार नहीं कर पा रहा है, जो एक बहुमत के साथ सत्ता में है और अपनी विदेशी नीति में स्वतंत्र रूप से निर्णय ले रही है। भारत की संप्रभुता की रक्षा के लिए उसकी सरकार की मजबूती और स्वतंत्रता महत्व

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