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Update Google Chromeब्रेकिंग न्यूज़
लोकतंत्र का अर्थ जनता की सत्ता है, पर बिहार में राजनीतिक दल वह सत्ता करोड़पतियों और आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को सौंप रहे हैं। एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के आंकड़ों से इस बात का स्पष्ट खुलासा हुआ है। एडीआर की नई रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में 32% उम्मीदवारों पर आपराधिक और 27% पर गंभीर आपराधिक मामले हैं। जबकि 42% उम्मीदवार करोड़पति हैं।
एडीआर की यह रिपोर्ट राजनीति में गरीब को गणेश मानकर सेवा करने से ज्यादा रुतबा, पैसा और कानून से बेफिक्री का आईना दिखाती है। 2600 उम्मीदवारों में से 838 ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं, जो साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के समान ही हैं। इसके अलावा, गंभीर अपराधों वाले उम्मीदवारों का प्रतिशत 25% से बढ़कर 27% हो गया है। चिंता यहीं नहीं रुकती—94 उम्मीदवारों पर महिलाओं के खिलाफ आपराधिक के केस भी हैं, जिनमें 5 नेताओं पर तो बलात्कार के मामले दर्ज हैं। इस बात का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि ऐसे नेता आखिर किस तरह महिलाओं की सुरक्षा कर पाएंगे। इन पर इनके संबंधित राजनीतिक दलों को भी किसी तरह की कोई शर्मिंदगी नहीं है।
एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों में, वामपंथी दल - सीपीआई (एम) (100%), सीपीआई (एमएल) (90%) और सीपीआई (78%) सूची में सबसे ऊपर हैं, उसके बाद कांग्रेस, राजद और भाजपा का स्थान है। रिपोर्ट में 243 निर्वाचन क्षेत्रों में से 164 (67%) को रेड अलर्ट निर्वाचन क्षेत्र के रूप में भी पहचाना गया है। रेड अलर्ट निर्वाचन क्षेत्र वे हैं जहाँ 3 या इससे अधिक चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं।
एडीआर की रिपोर्ट के आधार पर जब हम चार्जशीट से बैलेंस शीट की ओर बढ़ते हैं तो तस्वीर और ज्यादा स्पष्ट हो जाती है। करोड़पतियों की हिस्सेदारी साल 2020 के चुनाव में जहां में 33% थी जो अब 1,081 उम्मीदवारों के साथ 42% तक पहुँच गई है। इनमें, जेडी(यू) (91%), आरजेडी (91%), और एलजेपी (रामविलास) (89%) सूची में सबसे ऊपर हैं। उसके बाद भाजपा और कांग्रेस का स्थान है। उम्मीदवारों की औसत घोषित संपत्ति साल 2020 के चुनाव में ₹1.72 करोड़ रुपए थी जो बढ़कर 2025 के चुनाव में ₹3.35 करोड़ रुपए हो गई है। इसके अलावा, दोबारा चुनाव लड़ रहे 192 विधायकों की संपत्ति के विश्लेषण से पता चला कि इन पूर्व विधायकों की संपत्ति में 47% की वृद्धि हुई है।
एडीआर की रिपोर्ट कहती है कि अब बाहुबल पैसे की चमक बढ़ाता है और पैसा बाहुबल की पहुँच। हलफ़नामे भ्रष्टाचार को रोकते नहीं, उसे साफ-सुथरा दिखाते हैं। एडीआर के आँकड़े एक गहरी कुप्रथा को उजागर करते हैं: सत्ता का लेन-देन अपराध और पूँजी में होता है, एक ऐसा चक्र जहाँ पैसा पद खरीदता है और पद पैसा बनाता है। अगर पार्टियाँ सिर्फ “जीतने की गारंटी” देखती रहीं और सुप्रीम कोर्ट की चेतावनियों को दरकिनार करती रहीं, तो यह पूछना वाजिब है कि क्या राजनीति में अपराध अब योग्यता का दूसरा नाम है?
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