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मानवता के कल्याण के लिए समर्पित था महावीर स्वामी का विचार
By Lokjeewan Daily - 22-04-2024

हमारे देश में अनेक ऐसे संत ज्ञानी महापुरुष हुए हैं जिन्होंने न केवल भारत वरन पूरे विश्व में अपने ज्ञान का प्रकाश फैलाया है महावीर स्वामी उनमें से एक थे। जैन अनुश्रुतियों और परंपराओं के अनुसार जैन धर्म की उत्पत्ति और विकास में 24 तीर्थंकर सम्मिलित हैं इनमें से 22 तीर्थंकरों की ऐतिहासिकता स्पष्ट और प्रमाण रहित है। अंतिम दो तीर्थंकर पार्श्वनाथ (23वें) एवं महावीर स्वामी (24 वें) एवं अन्तिम तीर्थकर  की ऐतिहासिकता को जैन धर्म के ग्रंथों में प्रमाणित  किया गया है।

महावीर स्वामी जैन धर्म के 24 वें और अन्तिम तीर्थंकर थे। जैन धर्म की स्थापना का श्रेय इन्हें ही दिया जाता है क्योंकि इस धर्म के सुधार तथा व्यापक प्रचार प्रसार इनके समय में ही हुआ था। महावीर स्वामी का जन्म करीब ढाई हजार वर्ष पहले ईशा से 540 वर्ष पूर्व वैशाली गणराज्य के कुंड ग्राम में ज्ञागृत वंशी क्षत्रिय परिवार में हुआ था। इनके पिता सिद्धार्थ कुंड ग्राम की क्षत्रिय कुल के प्रधान तथा माता त्रिशला लक्ष्मी नरेश चेटक की बहन थी। इनका जन्म तीसरी संतान एवं वर्द्धमान के रूप में चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ। वर्द्धमान को वीर, अतिवीर और समंती भी कहा जाता था। वर्द्धमान को लोग श्रेयांश और यशस्वी भी कहते थे। इनके बड़े भाई का नाम नंदीवर्धन एवं बहन का नाम सुदर्शना था। वर्द्धमान का बचपन राजमहल में राजसी सुखसुविधा में बीता वो बड़े निर्भीक और साहसी थे। जब यह आठ वर्ष के हुए तो उन्हे पढ़ने, शिक्षा लेने, शस्त्र शिक्षा लेने के लिए शिल्प शाला में भेजा गया। वर्द्धमान का विवाह यशोदा नामक राजकान्या से हुआ इनकी अंवद्धा नाम की बेटी भी थी, कालांतर में जिसका विवाह जमालि से हुआ जो इनके शिष्य भी थे। 30 वर्ष की आयु में वर्द्धमान ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्म ज्ञान और कल्याण के पथ पर निकल गए। 

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