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काल भैरव जयन्ती, पूजा मुहूर्त और विधि
By Lokjeewan Daily - 21-11-2024

हिंदू धर्म में भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की पूजा का विशेष दिन माना जाता है। काल भैरव जयंती हर वर्ष मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनायी जाती है। भारत के कई स्थानों पर इसे भैरव अष्टमी या महाकाल भैरव जयंती भी कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार काल भैरव जी की पूजा आराधना करने से भक्तों को भय से मुक्ति मिलती है। आइए ऐसे में जान लेते हैं कि, नवंबर के माह में काल भैरव जयंती किस दिन है, इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त कब से कब तक रहेगा और पूजा की विधि।
काल भैरव जयंती 2024 पूजा विधि

काल भैरव जयंती के दिन जो लोग व्रत रखने वाले हैं उनको सुबह उठकर स्नान-ध्यान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। काल भैरव जी की पूजा रात्रि के समय की जाती है, इसलिए रात्रि के समय पूजा स्थल पर काल भैरव जी की प्रतिमा रखकर आपको पूजा-आराधना शुरू करनी चाहिए। वहीं अगर आपके घर के आसपास काल भैरव जी का मंदिर है तो वहां जाकर आप चौमुखी दीपक जलाकर काल भैरव जी की पूजा कर सकते हैं। घर के पूजा स्थल में पूजा करने वालों को काल भैरव जी की प्रतिमा के सामने फूल-अक्षत आदि अर्पित करने चाहिए। इसके बाद कालभैरव अष्टकम का पाठ और मंत्रों का जप आपको करना चाहिए। इसके बाद भैरव जी को आप इमरती, पान, नारियल आदि का भोग लगा सकते हैं। इसके साथ ही काल भैरव जयंती के दिन कुत्तों को रोटी और जरूरतमंदों को दान करने से भी आपको लाभ होता है।


काल भैरव जयंती 2024 की तिथि और पूजा मुहूर्त
• तिथि और डेट: 22 नवंबर 2024, मार्गशीर्ष माह, कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि (शुक्रवार)

• अष्टमी तिथि प्रारंभ: 22 नवंबर 2024 को शाम 06:07 मिनट से शुरू

• अष्टमी तिथि समाप्त: 23 नवंबर 2024 को शाम 7:56 मिनट तक

काल भैरव जयंती 2024 पूजा मुहूर्त

भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव जी की पूजा निशा काल यानि रात्रि में होती है, इसलिए काल भैरव जयंती 22 नवंबर को ही मनाई जाएगी। 22 नवंबर को शाम 6 बजकर 7 मिनट से आप काल भैरव जी की पूजा आराधना शुरू कर सकते हैं। काल भैरव जी की पूजा रात्रि में करना अतिशुभ माना जाता है, इसलिए अर्धरात्रि तक आप पूजा आराधना कर सकते हैं, या फिर मंत्रों का जप करके काल भैरव जी को प्रसन्न कर सकते हैं।


काल भैरव जयंती पर करें इन मंत्रों का जप

• ह्रीं उन्मत्त भैरवाय नमः।।

• ॐ काल भैरवाय नमः।।

• ॐ ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।।

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