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गुप्त नवरात्रि का दूसरा दिन, यानी 27 जून 2025 को द्वितीया तिथि पर महाविद्या तारा देवी की गुप्त साधना का विशेष महत्व है। दस महाविद्याओं में मां तारा को दूसरे स्थान पर रखा गया है। मां तारा ज्ञान, वाणी और मृत्यु से रक्षा की देवी मानी जाती हैं। गुप्त नवरात्रि में साधक तारा देवी की साधना के माध्यम से आत्मिक शक्ति, सच्चा विवेक और जीवन की दिशा को पहचानने का प्रयास करता है।
मां तारा का स्वरूप और आध्यात्मिक महत्व
माँ तारा को नीले रंग की अर्ध-क्रोधित मुद्रा में दर्शाया जाता है। वह कमर में बाघ की खाल और गले में मुण्डमाल धारण किए होती हैं। उनके एक हाथ में खड्ग और दूसरे में खप्पर होता है, जो जीवन-मृत्यु के चक्र को दर्शाता है। वहीं दूसरी ओर वह बालक स्वरूप साधक को स्तनपान कराती हुई भी वर्णित हैं, जो पोषण और करुणा की प्रतीक हैं।
तारा देवी की यह द्वैतता—क्रोध और करुणा का सामंजस्य—इस बात का संकेत है कि सच्चे ज्ञान की प्राप्ति केवल बाहरी दिखावे से नहीं, बल्कि भीतरी स्थिरता और साक्षात्कार से होती है। तांत्रिक परंपराओं में तारा देवी को 'उद्धार की देवी' कहा गया है, जो मृत्यु जैसे भय से साधक की रक्षा करती हैं।
द्वितीया तिथि का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, तारा देवी की उपासना विशेष रूप से तब की जाती है जब व्यक्ति असमंजस, जीवन की दुविधाओं या भय के दौर से गुजर रहा होता है। द्वितीया तिथि का चंद्रमा मन के प्रतीक रूप में जाना जाता है और यह दिन मानसिक संतुलन, स्मृति शक्ति और आंतरिक स्पष्टता के विकास के लिए आदर्श माना जाता है।
गुप्त नवरात्रि की साधना में द्वितीया तिथि पर तारा देवी का ध्यान साधक को मानसिक दृढ़ता और भविष्यदृष्टि प्रदान करता है। यह दिन जीवन की अनिश्चितताओं के बीच आत्मबल और विचार शक्ति को जागृत करने का प्रतीक होता है।
ज्योतिषीय संयोग
27 जून को गुप्त नवरात्रि की द्वितीया तिथि सर्वार्थ सिद्धि योग के प्रभाव में आरंभ होगी, जो 7:22 AM तक सक्रिय रहेगा। यह संयोग किसी भी प्रकार की साधना, संकल्प और आत्मिक अनुष्ठान के लिए अत्यंत अनुकूल माना जाता है। साथ ही, चंद्रमा की स्थिति मन की स्थिरता और साधना की एकाग्रता को बढ़ाने में सहायक मानी जा रही है।
गुप्त नवरात्रि का दूसरा दिन आत्मज्ञान और मानसिक सुरक्षा की साधना का दिन है। तारा देवी की उपासना साधक को आत्मविनाश से उबारती है और उसे आत्मबोध की ओर अग्रसर करती है। माँ तारा की गुप्त साधना के माध्यम से साधक केवल आध्यात्मिक शक्ति ही नहीं प्राप्त करता, बल्कि जीवन में दिशाहीनता और असमंजस की स्थिति से बाहर निकलने की राह भी खोज पाता है
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