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खोले के हनुमान जी मंदिर भारत के राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर में स्थित एक प्रसिद्ध हनुमान मंदिर है। यह मंदिर जिला मुख्यालय से लगभग 9 किमी दूर जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। यहाँ श्रद्धालुओं के अलावा देशी-विदेशी पर्यटक भी प्रकृति की मनोरम छटा को निहारने और आध्यात्मिक अनुभव के लिए आते हैं। यह स्थान जयपुर के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में गिना जाता है और 'गुलाबी नगरी' के धार्मिक स्वरूप को भी प्रकट करता है।
भौगोलिक स्थिति
यह मंदिर अरावली पर्वतमाला की लक्ष्मण डूंगरी पहाड़ी पर स्थित है। चारों ओर हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य का वातावरण इसे अत्यंत रमणीय बनाता है। मंदिर की स्थिति इतनी ऊँचाई पर है कि यहाँ से जयपुर शहर का सुंदर दृश्य भी देखने को मिलता है। पास ही में आमेर दुर्ग, जलमहल और नाहरगढ़ किला जैसे दर्शनीय स्थल भी स्थित हैं, जिससे यह क्षेत्र पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
इतिहास
1960 के दशक में जयपुर की पूर्वी पहाड़ियों के बीच स्थित इस निर्जन क्षेत्र में जंगली जानवरों के डर से लोग नहीं आते थे। उस समय एक साहसी ब्राह्मण, पंडित राधेलाल चौबे ने यहाँ प्रवेश किया और एक विशाल लेटी हुई हनुमान जी की प्रतिमा की खोज की। यह मूर्ति स्वयंभू मानी जाती है, अर्थात यह किसी मानव द्वारा निर्मित नहीं है, बल्कि प्राकृतिक रूप से पर्वत के पत्थरों में अंकित अवस्था में मिली थी। भगवान को देखकर उन्होंने वहीं पूजा-अर्चना प्रारंभ की और जीवन भर सेवा करते रहे।
उनकी अथक सेवा और तपस्या के परिणामस्वरूप यह निर्जन क्षेत्र एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बन गया। 1961 में, चौबे जी ने मंदिर के सुव्यवस्थित विकास के लिए नरवर आश्रम सेवा समिति की स्थापना की। उनके प्रयासों से यहाँ पर लगातार निर्माण कार्य होते रहे और आज यह स्थान हजारों भक्तों की आस्था का केंद्र बन चुका है। चूँकि बरसात के समय यहाँ पहाड़ियों से होकर पानी बहता था और पानी एक छोटे से 'खोले' (संकीर्ण घाटी) से होकर गुजरता था, इसलिए इस मंदिर का नाम "खोले के हनुमान जी" पड़ा।
वास्तुकला
मंदिर का निर्माण प्राचीन किला शैली में किया गया है और इसमें तीन मंजिलें हैं। मुख्य द्वार के सामने एक बड़ा खुला प्रांगण है, जहाँ धार्मिक आयोजन और भजन-कीर्तन होते हैं। प्रवेश द्वार के दाईं ओर पंडित राधेलाल चौबे की संगमरमर की समाधि है, जो उनकी स्मृति को श्रद्धांजलि देती है।
मंदिर परिसर में श्रीराम, श्रीकृष्ण, गणेश जी, माँ गायत्री, और महर्षि वाल्मीकि जी के भी मंदिर हैं, जो इसे एक समग्र हिन्दू तीर्थ बनाते हैं। इसके अतिरिक्त, यहाँ कई छोटे-छोटे मंदिर, जलकुंड, ध्यान स्थल, और उपासना कक्ष भी बनाए गए हैं। दीवारों और कांच पर की गई सुंदर चित्रकारी विशेष आकर्षण का केंद्र है, जिनमें रामायण और महाभारत की कथाएँ चित्रित की गई हैं।
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