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सावन में जयपुर के ताड़केश्वर महादेव मंदिर की यात्रा: आस्था, इतिहास और जल संरक्षण का अद्भुत संगम
By Lokjeewan Daily - 15-07-2025

राजस्थान के पर्यटन मानचित्र पर एक अनमोल आध्यात्मिक धरोहर
जयपुर जिसे आमतौर पर "पिंक सिटी" कहा जाता है, महलों और किलों के लिए जितना प्रसिद्ध है, उतना ही समृद्ध है यह धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक विरासत की दृष्टि से भी। सावन के पवित्र महीने में यहां का ताड़केश्वर महादेव मंदिर श्रद्धालुओं और पर्यटकों दोनों के लिए एक अनोखा आकर्षण बन जाता है। यह मंदिर सिर्फ एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि इतिहास, आध्यात्मिक ऊर्जा और पर्यावरण चेतना का सुंदर मिश्रण है, जो जयपुर के धार्मिक पर्यटन को एक नई दिशा देता है।

मध्य जयपुर में बसा शिवधाम – ताड़केश्वर महादेव

जयपुर शहर के हृदय में स्थित यह मंदिर प्राचीनता का प्रतीक है, जो श्मशान भूमि पर स्थापित एक स्वयंभू शिवलिंग के रूप में पूजित है। यहां की विशेषता है कि यह मंदिर जयपुर शहर के निर्माण से भी पहले अस्तित्व में आ गया था। यह मंदिर पर्यटकों को न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से आकर्षित करता है, बल्कि इसकी स्थापत्य कला, परिसर की ऊर्जा और उससे जुड़ी पौराणिक कथाएं भी विस्मित कर देती हैं।

पौराणिक कथाओं से जुड़ी श्रद्धा की परंपरा

महंत सत्यनारायण महाराज के अनुसार ये स्थान कभी घने ताड़ के वृक्षों का जंगल था। आमेर स्थित अंबिकेश्वर महादेव मंदिर के व्यास, सांगानेर जाते समय जब यहां रुके तो उन्होंने देखा कि एक बकरी अपने बच्चों को बचाने के लिए शेर तक से जा लड़ी। इसी स्थान पर एक गाय नियमित दूध भी छोड़ देती थी। इस घटना के बाद जमीन के नीचे से कुछ रहस्यमयी आवाजें आने लगी। इसकी सूचना आमेर के महाराजा सवाई जयसिंह को दी गई। महाराजा ने अपने दीवान और जयपुर के आर्किटेक्ट विद्याधर भट्टाचार्य को इस स्थान पर भेजा, जहां खुदाई में एक स्वयंभू शिवलिंग निकला। चूंकि यहां ताड़ के वृक्षों की भरमार थी, इसलिए इन्हें ताड़केश्वर महादेव कहा गया। ये मंदिर जयपुर के बसने से पहले ही अस्तित्व में आ चुका था। बाद में जब जयपुर शहर की नींव रखी गई, तो इस मंदिर को भव्य रूप दिया गया।

मंदिर में जल संरक्षण की प्रेरणादायक पहल

धार्मिक स्थलों के साथ आमतौर पर आस्था जुड़ी होती है, लेकिन ताड़केश्वर महादेव मंदिर इससे कहीं आगे बढ़कर पर्यावरणीय संरक्षण की अनूठी मिसाल भी प्रस्तुत करता है। यहां शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल सीधे नालियों में नहीं बहाया जाता, बल्कि इसे वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के माध्यम से संग्रहित कर भूजल स्तर को बढ़ाने में प्रयोग किया जाता है। यही कारण है कि यह मंदिर आज भारत के उन गिने-चुने धार्मिक स्थलों में शामिल है जो धार्मिकता के साथ वैज्ञानिक सोच को भी बढ़ावा देते हैं।

पर्यटन की दृष्टि से विशेष आकर्षण

पर्यटकों के लिए यह मंदिर एक पूर्ण अनुभव प्रस्तुत करता है—जहां पौराणिकता, परंपरा और पर्यावरणीय चेतना तीनों एक साथ चलते हैं। मंदिर की भव्य संरचना, पीतल से बनी विशाल नंदी प्रतिमा (जो पारंपरिक दिशा के बजाय दाईं ओर स्थित है), गणेश व हनुमान जी की प्रतिमाएं, तथा मंदिर परिसर का दिव्य वातावरण, यात्रियों को एक अलौकिक आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। सावन में यहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु जलाभिषेक के लिए आते हैं, जिससे मंदिर परिसर का वातावरण एक भक्ति महोत्सव में परिवर्तित हो जाता है।

सावन में ताड़केश्वर की महिमा और सांस्कृतिक रंग

सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और इस दौरान ताड़केश्वर महादेव मंदिर श्रद्धालुओं के महासागर में बदल जाता है। भक्तों का मानना है कि सावन में शिव यहां हर दिन नया रूप धारण करते हैं। यह बात न केवल धार्मिक दृष्टि से भावनात्मक जुड़ाव बढ़ाती है, बल्कि यह मंदिर को सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत जीवंत बना देती है।

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