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भोपाल: बयानवीर मंत्री विजय शाह के बयान से पूरे देश में बीजेपी की फजीहत हो रही है। नैतिकता और मर्यादा की पाठ पढ़ाने वाली पार्टी विजय शाह के मामले में असहज है। बात-बात पर विपक्षी नेताओं से इस्तीफा मांगने वाली बीजेपी अपने मंत्री विजय शाह पर कोई एक्शन नहीं ले पा रही है। दुनिया में भारत की सरकार ने कर्नल सोफिया कुरैशी को आगेकर जो संदेश दिया था, विजय शाह ने उस पर पलीता लगा दिया है। लेकिन बीजेपी इस्तीफा लेने का साहस नहीं दिखा पा रही है। आइए आपको उस डर के बारे में समझाते हैं, जिससे बीजेपी सहमी है।
अब बचाव में उतरी पार्टी
विजय शाह के मुद्दे पर अभी तक पार्टी नेताओं ने चुप्पी साध रखी थी। उमा भारती जैसे कद्दावर नेत्री शुरुआत से ही विजय शाह की बर्खास्तगी की मांग कर रहे हैं। गुरुवार को जिस तरीके से बीजेपी नेताओं के बयान आने लगे, उससे लगने लगा है कि पार्टी अब बचाव में जुटी है। सी एम मोहन यादव ने कहा कि हमने कोर्ट के आदेश का पालन किया है। वहीं, राज्य मंत्री प्रतिमा बागरी ने कहा कि उनकी मंशा को किसी को अपमान करने का नहीं था। उन्होंने माफी मांग ली है। अब पूरा मामला कोर्ट के पाले में चला गया है। संगठन और सरकार सभी चीजों पर नजर रख रही है। वहीं, विजय शाह ने चुप्पी ने साध रखी है। सरकार कह रही है कि हमने कोर्ट के आदेश का पालन किया है। ऐसे में अब यह संभावना कम ही है कि विजय शाह मंत्री पद से इस्तीफा देंगे। वहीं, पार्टी भी इस मसले पर कुछ नहीं बोल रही है।
बीजेपी की नीति है अब अलग
बीते कुछ सालों में बीजेपी की नीति अब बदल गई है। विपक्ष की मांगों पर नेताओं के इस्तीफे नहीं होते हैं। चाहे वह विवाद कितना भी बड़ा क्यों नहीं हो। यूपी में मंत्री टेनी मिश्रा के बेटे ने किसानों पर कार चढ़ा दी थी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। बृजभूषण के मामले में भी पार्टी चुप रही थी। ऐसे में विजय शाह के मामले को भी पूर्ववर्ती मामलों से जोड़कर देखा जा रहा है। इसकी संभावना कम ही है कि बीजेपी विजय शाह को बर्खास्त करेगी।
इस समीकरण से बच रहे विजय शाह
अब कांग्रेस के पास आदिवासी नेता हैं। लेकिन बीजेपी के पास गिने-चुने चेहरे हैं, जिनमें विजय शाह भी शामिल हैं। मध्य प्रदेश में लगभग 22% आदिवासी हैं। विधानसभा की 47 और लोकसभा की 6 सीटें इस वर्ग के लिए आरक्षित हैं। पिछले 20 सालों में बीजेपी का इन सीटों पर जीत का ग्राफ ऊपर-नीचे होता रहा है। 2018 के चुनाव के बाद बीजेपी ने आदिवासियों के बीच अपना जनाधार खो दिया है। इस बार के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच केवल 2 सीटों का अंतर है।
शाह का इस्तीफा न होने की एक बड़ी वजह आदिवासी वोटरों को साधना भी है। हरसूद और आसपास के आदिवासी इलाकों में शाह का काफी प्रभाव है। वे पिछले 40 साल से इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। 12 साल पहले 14 अप्रैल 2013 को उन्होंने झाबुआ में महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक बयान दिया था। तब उनसे केवल 4 महीने के लिए मंत्री पद छीना गया था।
शाह हो सकते हैं बागी
एमपी में आदिवासियों की आबादी 22 फीसदी है। इनमें गोंड आदिवासियों की आबादी 35 फीसदी है। विजय शाह गोंड समाज से ही आते हैं। साथ ही वह गोंड रॉयल फैमिली से भी ताल्लुक रखते हैं। कांग्रेस के पास आदिवासी समाज से कई बड़े नेता हैं, जिनमें उमंग सिंघार, बाला बच्चन, कांतिलाल भूरिया, ओमकार सिंह मरकाम, हीना कांवरे और सुखदेव पांसे हैं। बीजेपी इस मोर्चे पर कमजोर दिखती है। ऐसे में शाह पर कार्रवाई कर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती है।
इस्तीफा न लेने का एक और बड़ा कारण विजय शाह के बगावती तेवर हैं। विजय शाह के करीबियों का कहना है कि जब हाईकोर्ट ने शाह के खिलाफ FIR दर्ज करने की बात कही, तब संगठन ने कथित रूप से उन्हें इस्तीफा देने के लिए कहा। लेकिन शाह के खेमे से खबर आई कि अगर इस्तीफे का ज्यादा दबाव रहा तो वे मंत्री पद के साथ विधायकी भी छोड़ देंगे। ऐसे में बीजेपी के लिए यह राह चुनौतीपूर्ण हो सकता था। एमपी हाईकोर्ट के निर्देश पर मंत्री विजय शाह पर एफआईआर हो गई है। ऐसे में सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी है। अब सुप्रीम कोर्ट क्या कहती है, इसके बाद ही सरकार आगे फैसला लेगी।
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