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पुरानी और महत्वपूर्ण फिल्मों को भविष्य के लिए संरक्षित करने और उन्हें बेहतर गुणवत्ता में देखने का एक तरीका है। वह तरीका है रेस्टोरेशन। इससे पुरानी फिल्में फिर से जीवंत हो जाती हैं। नेशनल फिल्म आर्काइव ऑफ इंडिया (NFAI) और फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन (FHM) लगातार पुरानी फिल्मों के प्रिंट को संरक्षित करने के काम में लगा हुआ है।
यहां पर पुरानी फिल्मों के प्रिंट को किस तरह से रिस्टोर किया जाता है, आज रील टु रियल के इस एपिसोड में जानेंगे। इस पूरे प्रोसेस को समझने के लिए हमने फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन के ओनर शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर और लेखक-निर्देशक रूमी जाफरी से बात की।फिल्म रेस्टोरेशन इसलिए जरूरी है ताकि हमारी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित किया जा सके। पुरानी फिल्में और वीडियो टेप खराब हो सकते हैं, इसलिए उन्हें रिस्टोर करना आवश्यक है ताकि आने वाली पीढ़ियों को इन ऐतिहासिक कलाकृतियों को देखने का मौका मिल सके। रेस्टोरेशन से ना केवल फिल्म की गुणवत्ता में सुधार होता है, बल्कि यह हमें अतीत की कहानी को और बेहतर ढंग से समझने में भी मदद करता है।
फिल्मों के रेस्टोरेशन में कई चुनौतियां आती हैं। मसलन- पुरानी प्रिंट खराब स्थिति में पाई जाती हैं, जिनमें टूटे हुए स्प्रोकेट और फफूंद जैसी समस्याएं होती हैं। मूल कैमरा निगेटिव या प्रिंट अक्सर उपलब्ध नहीं होते हैं, जिससे रेस्टोरेशन की प्रक्रिया मुश्किल हो जाती है। यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें उन्नत तकनीकों और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। फिल्म रेस्टोरेशन एक महंगा और समय लेने वाला प्रोसेस है। एक फिल्म के रेस्टोरेशन में 15-16 लाख खर्च आता है। श्याम बेनेगल की ‘मंथन’ की मूल निगेटिव में फफूंद पाया गया था, जिसे हटाने में भी कठिनाई हुई थी।
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