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-अखंड सुहाग और मनोवांछित वर की कामना को लेकर रखा व्रत
भीलवाड़ा। शहर और आसपास के ग्रामीण इलाकों में कजली तीज (सातुड़ी तीज) का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास और पारंपरिक श्रद्धा के साथ मनाया गया। अखंड सुहाग की कामना के लिए सुहागिन महिलाओं ने दिन भर निर्जल व्रत रखा, वहीं कुंवारी कन्याओं ने मनोवांछित वर की प्राप्ति के लिए तीज माता का पूजन किया। इस पर्व की सबसे खास पहचान, सत्तू की पारंपरिक महक, आज घर-घर में फैली रही, जिसने पूरे माहौल को और भी खास बना दिया। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को आने वाली यह तीज, जिसे बड़ी तीज या सातुड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है, इस दिन सुबह से ही महिलाओं में विशेष उत्साह देखने को मिला। उन्होंने नए और पारंपरिक परिधान पहनकर सोलह श्रृंगार किया। व्रत रखने वाली महिलाओं ने सुबह स्नान आदि के बाद व्रत का संकल्प लिया। दिन भर व्रत रखने के बाद शाम को चंद्रोदय होने पर पूजा की गई। पूजा के लिए एक विशेष स्थान को सजाया गया, जहां नीमड़ी की टहनी को तीज माता के रूप में स्थापित किया गया। नीमड़ी को रोली, चावल, मेंहदी और चुनरी से सजाया गया। पूजा में कुमकुम, अक्षत, मेहंदी, मौली, काजल, फल, फूल और खासकर सत्तू का भोग लगाया गया। कई घरों में कुंवारी कन्याओं ने भी अपनी मां और दादी के साथ मिलकर यह पूजा की।
सत्तू और चंद्र दर्शन का महत्व
इस पर्व में सत्तू का विशेष महत्व होता है। गेहूं, जौ, चना, चावल और अन्य अनाजों से बना सत्तू, व्रत के बाद खाया जाता है। पूजा के दौरान भी तीज माता को सत्तू का भोग लगाया जाता है। आज भीलवाड़ा के बाजारों में सत्तू और उससे बनी मिठाइयों की दुकानें सुबह से ही गुलजार रहीं। शाम को चंद्र दर्शन के बाद महिलाओं ने सत्तू खाकर अपना व्रत खोला। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सत्तू का दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है।
सांस्कृतिक कार्यक्रम और उत्साह का माहौल
शहर के कई मोहल्लों और कॉलोनियों में कजली तीज के अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया। इन कार्यक्रमों में महिलाओं ने पारंपरिक गीत गाए, झूले डाले और समूह में नृत्य किया। पारंपरिक गीतों में तीज माता की महिमा का बखान किया गया। इन आयोजनों ने पर्व के उत्साह को और बढ़ा दिया। शहर के प्रमुख मंदिरों में भी तीज माता के दर्शन के लिए भक्तों की लंबी कतारें देखी गईं।
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