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- विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस सिर्फ एक तारीख
- चीख रहे मौत के आंकड़े, फिर भी पुलिस खामोश
- लोकेश सोनी-
भीलवाड़़ा। आज, 10 सितंबर को जब पूरा विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मना रहा है, भीलवाड़ा में यह दिवस सिर्फ एक तारीख बनकर रह गया है। शहर में आत्महत्या के आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि जागरूकता के सारे प्रयास हवा हवाई हैं। पिछले साल 3 6 लोगों ने जान दी थी, इस साल यह आंकड़ा 43 हो गया है। यह सिर्फ एक संख्या नहीं, बल्कि प्रशासन की नाकामी का एक दर्दनाक सबूत है। समस्या की जड़ पर कोई काम नहीं हो रहा। शहर में दो ऐसे कारण हैं, जो सीधे-सीधे लोगों को मौत के मुंह में धकेल रहे हैं—सूदखोर माफिया और ऑनलाइन सट्टेबाजी। ये वो दो कैंसर हैं, जो भीलवाड़ा के समाज को भीतर से खोखला कर रहे हैं। कर्ज चुकाने में असमर्थ लोग मानसिक तनाव से टूटकर फांसी लगा रहे हैं, और ऑनलाइन सट्टे में लाखों गंवाने वाले अपनी जिंदगी खत्म कर रहे हैं। पीडि़त परिवार चीख-चीखकर पुलिस से मदद मांगते हैं, लेकिन पुलिस कागजी कार्रवाई से आगे नहीं बढ़ती। इन माफियाओं का हौसला इसलिए बढ़ा हुआ है, क्योंकि उन्हें पता है कि उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं होगी। पुलिस के विशेष अभियान सिर्फ हेडलाइन बनकर रह जाते हैं, जबकि असली अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं। सरकार ने एक सराहनीय कदम उठाते हुए टेली-मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन 14416 शुरू की है। यह मरहम का काम तो कर रही है, लेकिन जब लोगों को आत्महत्या के कगार पर धकेलने वाले लोग ही खुलेआम घूम रहे हों, तो क्या यह हेल्पलाइन सिर्फ एक फोन नंबर बनकर नहीं रह जाएगी? क्या सरकार की प्राथमिकता सिर्फ पीडि़तों को शांत करना है, या उन शिकारियों को खत्म करना है जो उन्हें मौत के कुएं में धकेल रहे हैं? भीलवाड़ा के लोग न्याय का नंबर डायल करना चाहते हैं, ना कि सिर्फ एक हेल्पलाइन का। विश्व आत्महत्या दिवस पर हमें सिर्फ जागरूकता फैलाने से काम नहीं चलेगा। हमें उन जड़ों को काटना होगा जो इस समस्या को बढ़ा रही हैं। जब तक सूदखोरों और सट्टेबाजों पर लगाम नहीं लगेगी, तब तक यह दिवस सिर्फ एक आंकड़ा बनकर रह जाएगा। प्रशासन को यह समझना होगा कि उनकी निष्क्रियता ही इन मौतों के लिए जिम्मेदार है। यह सिर्फ एक सामाजिक समस्या नहीं, बल्कि कानून व्यवस्था की भी विफलता है। अगर पुलिस और प्रशासन अब भी नहीं जागे तो अगली बार आत्महत्या दिवस पर आंकड़ा 43 से भी ऊपर जाएगा। और तब सिर्फ भीलवाड़ा की जनता नहीं, पूरा देश प्रशासन पर सवाल उठाएगा कि जब मौका था तो वे कहाँ थे? यह टिप्पणी है, यह दर्द है, और यह भीलवाड़ा की सच्चाई है।
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