It is recommended that you update your browser to the latest browser to view this page.

Please update to continue or install another browser.

Update Google Chrome

कलेजा चीर देने वाली दरिंदगी से रूह कांप उठी, यह एक केस नहीं, विफलता का घिनौना चेहरा
By Lokjeewan Daily - 31-10-2025

भीलवाड़ा लोकजीवन (लोकेश सोनी)। भोजरास-दौलतपुरा से आई यह खबर महज़ एक घटना नहीं है, यह हमारी सभ्य कहलाने वाली मानवता के माथे पर लगा एक कलंक है! उस नवजात की चीत्कार सिर्फ़ कांटों के बीच नहीं गूंजी, बल्कि उसने समूचे समाज की आत्मा को चीर कर रख दिया है। जन्म देने वाली माँ, जिसे धरती पर ममता का पर्याय माना जाता है, उसने ममता को तार-तार कर दिया। कलेजे के टुकड़े को कांटों में फेंकने का यह कैसा हृदयहीन फैसला था? क्या उस क्षण, उसके हाथ नहीं कांपे? क्या एक बार भी  मां  होने का अहसास नहीं जागा? यह घटना सिद्ध करती है कि हम भौतिक रूप से कितने ही आगे बढ़ गए हों, लेकिन नैतिक और सामाजिक मूल्यों के धरातल पर आज भी शर्मनाक रूप से पिछड़े हुए हैं। बात सिर्फ़ उस निर्मम महिला की नहीं है, बल्कि उस समाज की भी है, जिसके दबाव या भय ने उसे यह जघन्य अपराध करने पर मजबूर किया होगा।
धन्यवाद है उन ग्रामीणों को, जिनकी संवेदनशीलता ने उस बिलखते जीवन को बचाया। और साधुवाद है गुलाबपुरा पुलिस को, जिसने त्वरित कार्रवाई कर मासूम को अस्पताल पहुंचाया।
मगर, यह मामला सिर्फ़  पुलिस केस  बनकर नहीं रह जाना चाहिए। पुलिस जल्द से जल्द उस कुमाता को तलाशे, जिसने अपने ही अंश के प्रति इतना क्रूर व्यवहार किया। साथ ही, समाज और सरकार को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी मजबूरी, सामाजिक डर या गैर-कानूनी बंधन के कारण कोई मां फिर से ममता की हत्या न करे। सवाल बड़ा है कि जब एक मां ही अपने बच्चे की दुश्मन बन जाए, तब समाज किस दिशा में जा रहा है? भीलवाड़ा की यह घटना हर नागरिक को आईना दिखाती है—हम कब समझेंगे कि जीवन अनमोल है? इस मासूम की चीख़, हमारे सामाजिक हृदय परिवर्तन की पहली गुहार होनी चाहिए। यह कघन्य कृत्य है! कठोरतम निंदा!

अन्य सम्बंधित खबरे