It is recommended that you update your browser to the latest browser to view this page.

Please update to continue or install another browser.

Update Google Chrome

सर्दी का देसी जुगाड शुरू, बैल की चाल, शुद्ध तेल की धार, घाणे उगलने लगे सेहत का सोना
By Lokjeewan Daily - 12-11-2025

भीलवाड़ा। गुलाबी नगरी की सर्द बयारें जैसे ही भीलवाड़ा की फिजाओं तक पहुंची हैं, वैसे ही यहां की गलियों में सदियों पुरानी एक मधुर गूंज सुनाई देने लगी है—घाणे की चर्र-चर्र! जी हां, आधुनिक मशीनों के शोर के बीच भीलवाड़ा में फिर से बैल चलित पारंपरिक घाणे घूम उठे हैं। यह सिर्फ तेल निकालने का काम नहीं, बल्कि सर्दी के मौसम से लडऩे की एक पुरानी, भरोसेमंद तैयारी है। बैल की धीमी, लयबद्ध चाल से  कच्ची घाणी  में पिसते तिल अब सेहत का  सोना यानी शुद्ध तिल्ली का तेल उगल रहे हैं, जिसके साथ ही तैयार हो रहा है गरमाहट देने वाला पौष्टिक तिल्ली का मावा (कान्या)। वैसे भी सर्दी में  तिल्ली के तेल और मावे की मांग कई गुना बढ़ जाती है। इसका सीधा कारण है इसकी तासीर का गर्म होना और गुणों से भरपूर होना। बाजार में बिक रहे रिफाइंड तेलों से इतर, बैलों के माध्यम से धीरे-धीरे चलने वाली घाणी में निकला गया यह तेल न केवल शुद्धता की कसौटी पर खरा उतरता है, बल्कि इसमें ओमेगा फैटी एसिड और विटामिन-ई के प्राकृतिक गुण भी पूरी तरह सुरक्षित रहते हैं। तिल्ली का तेल निकालने के बाद बचे हुए खली से गुड़ मिलाकर तिल्ली का मावा तैयार किया जाता है। स्थानीय भाषा में इसे कान्या' या सानी भी कहते हैं। इस मावे का सेवन खास तौर पर बच्चों और बुजुर्गों के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है। यह शरीर को तुरंत ऊर्जा देता है, जोड़ों के दर्द में राहत पहुंचाता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता  को भी मजबूत करता है।
परंपरा को सहेजने की जद्दोजहद
घाणी चलाने वाले पारंपरिक कारीगरों का कहना है कि जहां एक ओर शुद्ध तेल की मांग बढ़ी है, वहीं दूसरी ओर तिल्ली, गुड़, और बैलों के चारे की बढ़ती कीमतों ने लागत बढ़ा दी है। इस पारंपरिक और श्रमसाध्य कार्य को आधुनिक मशीनी युग में जीवित रखना उनके लिए एक बड़ी चुनौती है। हालांकि, स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होते ग्राहक आज भी इस शुद्धता के लिए अधिक कीमत चुकाने को तैयार हैं, जो इस देशी जुगाड़ को जिंदा रखे हुए है। यह अनूठा नजारा भीलवाड़ा की संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है, जहां लोग आज भी सेहत के मामले में सदियों पुराने और शुद्ध तरीकों पर ही भरोसा करते हैं। 

अन्य सम्बंधित खबरे