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गर्भावस्था की शुगर मां और शिशु, दोनों के लिए साइलेंट किलर!
By Lokjeewan Daily - 14-11-2025

-   मधुमेह का अनियंत्रण संतान में भी मधुमेह की नींव
-  हर गर्भवती की डायबिटीज़ एवं बीपी की स्क्रीनिंग अनिवार्य
भीलवाड़ा लोकजीवन।  गर्भावस्था के दौरान होने वाली शुगर यानी जेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस  मां और गर्भस्थ शिशु दोनों के लिए एक खतरनाक अलार्म है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अक्सर इसकी गंभीरता को अनदेखा कर दिया जाता है, जिससे भविष्य में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होती हैं। इस वर्ष विश्व मधुमेह जागरूकता दिवस पर स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. मनीषा बहड़  से लोकजीवन रिपोर्टर ने इस विषय पर विशेष वार्ता की।
सवाल -  जेस्टेशनल डायबिटीज क्या है?
जवाब - यह वह स्थिति है जब गर्भावस्था के दौरान, आमतौर पर दूसरे या तीसरे तिमाही में, रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है। यह इसलिए होता है क्योंकि गर्भावस्था के हार्मोन इंसुलिन की कार्यक्षमता को बाधित करते हैं। शरीर पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता या उसका उपयोग ठीक से नहीं कर पाता, जिससे ग्लूकोज कोशिकाओं में जाने के बजाय रक्त में जमा होने लगता है।

सवाल - गर्भस्थ शिशु पर क्या गंभीर खतरे है
जवाब - जीडीएम का सबसे बड़ा खतरा गर्भस्थ शिशु पर होता है।  मां का अतिरिक्त ग्लूकोज प्लेसेंटा के माध्यम से शिशु तक पहुंचता है, जिससे शिशु अधिक इंसुलिन बनाता है और उसका शरीर जरूरत से ज्यादा बड़ा (4 किलोग्राम से अधिक) हो जाता है। इससे डिलीवरी में जटिलताएं आती हैं, जैसे कि कंधे का अटकना। पीड़ित महिलाओं में समय से पहले डिलीवरी का खतरा बढ़ जाता है।  जन्म के तुरंत बाद शिशु का ब्लड शुगर खतरनाक रूप से गिर सकता है। जीडीएम से जन्मे बच्चों में जीवन में बाद में मोटापा और टाइप 2 डायबिटीज विकसित होने की संभावना अधिक होती है।
सवाल -मां को कितने समय तक रहता है खतरा
जवाब - डिलीवरी के बाद जीडीएम आमतौर पर ठीक हो जाता है, लेकिन यह स्थायी खतरे छोड़ जाता है। इससे पीड़ित 50 प्रतिशत त्नसे अधिक महिलाओं को अगले 5 से 10 वर्षों में टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा रहता है।
सवाल - जीडीएम से मधुमेह के अलावा कौन सी बीमारी होती है
जवाब - गर्भावस्था में खतरनाक उच्च रक्तचाप की स्थिति का जोखिम बढ़ जाता है। भविष्य की गर्भावस्थाओं में पुनरावृत्ति अगली गर्भावस्था में फिर से जीडीएम होने की उच्च संभावना रहती है।
सवाल - रोकथाम और उपचार की कुंजी: जागरूकता
जवाब - समय पर जांच, खान-पान में सुधार और जागरूकता ही इसकी रोकथाम की कुंजी है।  हर गर्भवती महिला की 24वें से 28वें सप्ताह के बीच जीडीएम के लिए ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट  के माध्यम से नियमित स्क्रीनिंग सुनिश्चित करना स्वास्थ्य सेवाओं की प्राथमिकता होनी चाहिए।  मीठे खाद्य पदार्थ, प्रसंस्कृत कार्बोहाइड्रेट (मैदा, सफेद चावल) और वसायुक्त भोजन से परहेज करें। आहार में फाइबर युक्त भोजन, साबुत अनाज और प्रोटीन को शामिल करें। हल्का और नियमित व्यायाम  इंसुलिन संवेदनशीलता को बेहतर बनाता है।  यदि आहार और व्यायाम से शुगर नियंत्रित नहीं होती, तो डॉक्टर द्वारा इंसुलिन इंजेक्शन या दवाओं का उपयोग करना आवश्यक है।

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