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मेडिकल कॉलेज प्रशासन में बड़े सुधार, प्रिंसिपल और अधीक्षक की नई पात्रता तय
By Lokjeewan Daily - 15-11-2025

भीलवाड़ा लोकजी वन। राजस्थान सरकार ने चिकित्सा शिक्षा विभाग में बड़े प्रशासनिक सुधार लागू करते हुए मेडिकल कॉलेजों के प्रिंसिपल और अधीक्षक पदों की नियुक्ति प्रक्रिया, पात्रता, कार्यकाल और जिम्मेदारियों में व्यापक बदलाव कर दिए हैं। नए नियमों के अनुसार अब प्रिंसिपल और अधीक्षक किसी भी प्रकार की क्लिनिकल प्रैक्टिस नहीं कर सकेंगे और उन्हें नॉन-प्रैक्टिस एलाउंस भी नहीं मिलेगा। सरकार ने इन पदों पर प्रतिनियुक्ति की व्यवस्था पूरी तरह समाप्त कर दी है और नियुक्ति अब केवल विशेषज्ञ चयन समिति द्वारा साक्षात्कार के आधार पर ही होगी। विभाग का मानना है कि इससे मेडिकल कॉलेजों में प्रशासनिक अनुशासन, पारदर्शिता और स्थिर नेतृत्व सुनिश्चित होगा। नए नियमों में प्रिंसिपल पद के लिए अधिकतम आयु सीमा 57 वर्ष तय की गई है और वही चिकित्सक पात्र होंगे जिन्होंने किसी मेडिकल कॉलेज में कम से कम तीन वर्ष तक विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य किया हो। प्रिंसिपल का कार्यकाल चार वर्ष (2 2) का होगा और आवश्यकता पडऩे पर उन्हें प्रदेश के किसी भी मेडिकल कॉलेज में स्थानांतरित किया जा सकेगा। इसी प्रकार अस्पताल अधीक्षक पद के लिए कम से कम पाँच वर्ष तक सीनियर प्रोफेसर रह चुके चिकित्सक को प्राथमिकता मिलेगी। अधीक्षक का कार्यकाल छह वर्ष (2 2 2) तय किया गया है और उन्हें विभाग का एचओडी या यूनिट हेड नहीं बनाया जा सकेगा। दोनों पदों पर बैठे अधिकारी अपना मूल पद छोड़े बिना कार्य करेंगे और कार्यकाल पूरा होते ही अनिवार्य रूप से अपने मूल पद पर लौट जाएंगे। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि एचओडी की नियुक्ति वरिष्ठता, अनुभव और प्रशासनिक क्षमता को ध्यान में रखकर की जाएगी और उन्हें अधीक्षक की अनुमति के बिना नहीं हटाया जा सकेगा। इन नए निर्देशों से प्रदेश के कई मेडिकल कॉलेज प्रभावित होंगे, जिनमें भीलवाड़ा का मेडिकल कॉलेज भी शामिल है, जहाँ वर्तमान पदाधिकारी नई पात्रता शर्तों के अनुरूप नहीं माने जा रहे हैं। विभाग का उद्देश्य चिकित्सा शिक्षा, शोध और अस्पताल प्रबंधन में दक्षता और गुणवत्ता को बढ़ाना है, ताकि संस्थानों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं और पारदर्शी कार्यप्रणाली स्थापित हो सके।

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