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डिजिटल दुनिया का गुलाम बनाने से समाज को बचाएगा एमजीएच
By Lokjeewan Daily - 17-11-2025

भीलवाड़ा। आजकल बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक में हर समय मोबाइल चेक करने की जो आदत बढ़ रही है, उसे मनोरोग विभाग की दृष्टि से एक गंभीर समस्या माना जा रहा है। बार-बार यह महसूस होना कि फोन पर कॉल आया है या घंटी बजी है (फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम), सोशल मीडिया स्टेटस और मैसेज के जवाब को तुरंत देखने की बेचैनी  ये सभी लक्षण नोमोफोबिया नामक मनोविकार की ओर इशारा करते हैं। यह एक ऐसा फोबिया है जिसमें व्यक्ति को अपने मोबाइल फोन से दूर रहने, नेटवर्क खोने, या बैटरी खत्म होने का गंभीर डर और चिंता सताने लगती है। इस लत के कारण एकाग्रता में कमी, अनिद्रा, बेचैनी और यहां तक कि अवसाद (डिप्रेशन) जैसी मनोवैज्ञानिक समस्याएं भी उत्पन्न हो रही हैं, जिसे कई विशेषज्ञ  पॉपकॉर्न ब्रेन  सिंड्रोम का भी नाम दे रहे हैं। इस बढ़ती हुई मानसिक स्वास्थ्य समस्या को देखते हुए, भीलवाड़ा के महात्मा गांधी अस्पताल के मनोरोग विभाग ने एक सराहनीय कदम उठाया है। चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अरुण कुमार गौड़ के निर्देश पर, मनोरोग विभाग जल्द ही ऐसे रोगियों को सही करने और आम जनता को जागरूक करने के लिए विशेष क्लासेस आयोजित करेगा। विभाग द्वारा मोबाइल की लत (नोमोफोबिया) से पीडि़त बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों के लिए नियमित रूप से काउंसलिंग और जागरूकता कक्षाएं आयोजित की जाएंगी। इन कक्षाओं का मुख्य उद्देश्य मोबाइल के अत्यधिक उपयोग से होने वाले शारीरिक और मानसिक दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को शिक्षित करना है। विशेषज्ञों द्वारा मरीजों को मोबाइल के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए व्यवहारिक बदलाव, माइंडफुलनेस तकनीक और अन्य मनोवैज्ञानिक उपचारों की जानकारी दी जाएगी। यह भी बताया जाएगा कि कैसे नोटिफिकेशन को म्यूट या सीमित करके, एक निश्चित समय के लिए फोन को दूर रखकर और अन्य गतिविधियों में मन लगाकर इस आदत पर काबू पाया जा सकता है।
एक्सपर्ट व्यू....
मोबाइल की लत अब एक मनोरंजन नहीं, बल्कि एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य चुनौती बन गई है। नोमोफोबिया के कारण लोगों की उत्पादकता, सामाजिक रिश्ते और नींद बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। अस्पताल का मनोरोग विभाग इन विशेष कक्षाओं के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाएगा और पीडि़तों को सही मार्गदर्शन एवं उपचार प्रदान करेगा ताकि वे डिजिटल दुनिया के गुलाम बनने से बच सकें। ये विशेष कक्षाएं न केवल प्रभावित व्यक्तियों को उपचार देंगी, बल्कि पूरे समाज में मोबाइल के संतुलित और स्वस्थ उपयोग के प्रति एक नई चेतना जगाने का काम करेंगी।
डॉ. अरुण कुमार गौड़, अधीक्षक, एमजीएच

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