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- नए मामलों में गिरावट, लेकिन बच्चों में संक्रमण चिंता का कारण
- गर्भवती महिलाओं की समय पर जांच से रोका जा सकता है ट्रांसमिशन
- लोकेश सोनी-
भीलवाड़ा। विश्व एड्स दिवस पर रोगियों की संख्या जिले में एचआईवी संक्रमण की दोहरी तस्वीर पेश करती है। एक ओर नए मरीजों की संख्या में निरंतर गिरावट राहत देती है, वहीं दूसरी ओर बच्चों में संक्रमण के बढ़ते मामले चिंता को गहरा करते हैं। पिछले 14 वर्षों में जिले में कुल 6220 एचआईवी पॉजिटिव मरीज रजिस्टर्ड हुए, जिनमें 421 बच्चे 248 बालक और 173 बालिकाएं शामिल हैं। यह आंकड़ा बताता है कि संक्रमण की जड़ें परिवार स्तर तक मौजूद हैं और रोकथाम की चुनौतियां आज भी बनी हुई हैं।
2011 में 732 मरीजअब घटकर हुए 176
वर्ष 2011 में जिले में 732 नए एचआईवी मरीज सामने आए थे, जबकि 2025 में यह संख्या घटकर 176 रह गई है। स्वास्थ्य विभाग इस गिरावट को बढ़ती जागरूकता, समय पर उपचार उपलब्धता, सुरक्षित व्यवहार और सरकारी स्वास्थ्य कार्यक्रमों की सफलता का परिणाम मानता है। हालांकि विशेषज्ञ चेताते हैं कि संक्रमण कम हुआ है, खत्म नहीं। इसलिए सतर्कता और लगातार जांच अभियान जारी रहना जरूरी है।
बच्चों में संक्रमण सबसे चिंताजनक पहलू
जिले में बच्चों में एचआईवी के 421 मामले दर्ज होना चिकित्सा विशेषज्ञों को चिंतित कर रहा है। विशेषज्ञ बताते हैं कि छोटे बच्चों में संक्रमण के अधिकांश मामले मां से बच्चे में एचआईवी ट्रांसमिशन यानी मदर-टू-चाइल्ड ट्रांसमिशन के कारण सामने आते हैं। कई परिवार गर्भावस्था के दौरान समय पर जांच नहीं करवाते, जिससे संक्रमण की जानकारी देर से मिलती है और बच्चे जोखिम में आ जाते हैं।
जांच और प्रोटोकॉल पालन सबसे बड़ा हथियार
चिकित्सा विशेषज्ञों ने गर्भवती महिलाओं की समय पर एचआईवी जांच को अनिवार्य और सबसे प्रभावी कदम बताया है। यदि गर्भावस्था के शुरुआती चरण में ही संक्रमण की पहचान हो जाए, तो सही उपचार के जरिए बच्चे में संक्रमण की संभावना लगभग शून्य तक पहुंचाई जा सकती है। इसके लिए एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी, सुरक्षित प्रसव, नवजात को प्रोफिलैक्टिक दवाएं और स्तनपान संबंधी नियंत्रित दिशा निर्देश अनिवार्य हैं।
जागरूकता बढ़ी, लेकिन चुनौती अब भी बाकी
जिले में एचआईवी जागरूकता बढ़ी है और इलाज सुविधाओं की उपलब्धता बेहतर हुई है। केंद्र, परामर्श सेवाएं और सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रमों ने संक्रमण दर कम करने में बड़ी भूमिका निभाई है। फिर भी परिवारों का समय पर जांच के प्रति उदासीन रवैया, सामाजिक शर्म और जानकारी का अभाव बच्चों को सबसे अधिक प्रभावित कर रहा है। विश्व एड्स दिवस पर स्वास्थ्य विभाग की अपील है कि समय पर जांच कराएं, उपचार लें और बच्चों को संक्रमण से बचाएं।
डॉ. अरुण कुमार गौड़, अधीक्षक, एमजीएच
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