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राजस्थानी संस्कृति की अद्भुत प्रस्तुतियाँ, पद दंगल और रिम भवई की प्रस्तुति से दर्शक हुए मंत्र मुग्ध
By Lokjeewan Daily - 25-01-2025

जयपुर। राजस्थान पर्यटन विभाग की ओर से राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत रुप में एक नई पहचान दिलाने के लिए विभाग द्वारा आयोजित “कल्चरल डायरीज़”के चौथे संस्करण में शुक्रवार को अल्बर्ट हॉल पर प्रदेश के लोक कलाकारों द्वारा घूमर, पद दंगल, मंजीरा, कथक-फ्यूज़न का मंचन किया गया।

कार्यक्रम की शुरुआत संगीता सिंघल के नेतृत्व में पारंपरिक घूमर और मंजीरा नृत्य की प्रस्तुति से हुई। सामान्यतया घूमर नृत्य एक घेरे में प्रस्तुत किया जाता है। इस बार घूमर नृत्य में नवाचार करते हुए एक घेरे के अंदर एक से अधिक घेरे बनाकर घूमर नृत्य को एक अनोखे अंदाज़ में प्रस्तुत किया। इसके पश्चात पारंपरिक मंजीरा नृत्य में भी इस बार महिला कलाकारों के स्थान पर पुरुष कलाकारों को प्रथम पंक्ति में प्रस्तुति के लिए रखकर एक नये अंदाज़ में प्रस्तुत किया गया।

राजस्थान के प्रसिद्ध धरोहर पद दंगल कला एवं इस कला के तीसरी पीढ़ी के कलाकार प्रभुलाल मीणा ने अपने 15 लोक कलाकारों की टीम के साथ में घेरा पद दंगल और ढूंढाढ़ की अद्भुत वाकपटुता व आशुकवित्व, “मोती डूंगरी वाल्ड़ा थारा बाजगा बाजा.....” और “गुलाबी पगड़ी ये गैटोर का राजा.....” जैसे लोक गीतों की प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्र मंग्घ कर दिया। पद दंगल कला राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर जिसे प्रभुलाल मीणा ने राजस्थान के साथ-साथ देश-विदेश में भी प्रचलित किया है और साथ ही अपनी वर्तमान पीढ़ी को भी इस कला से जोड़े रखा है।

अलवर के प्रसिद्ध लोक कलाकार बन्ने सिंह प्रजापत रिम भवई नृत्य कला के अविष्कारक और प्रथम पीढ़ी के कलाकार माने जाते हैं, जिन्होंने आज शाम अल्बर्ट हॉल सांस्कृतिक संध्या में अपने 10 कलाकारों के साथ “ढोला मारो अलवर सूं आयो, बिछिया बाजणा ल्यायो......” लोक गीत पर रिम भवई नृत्य प्रस्तुत किया।

कथक नृत्यांगना संगीता सिंघल के नेतृत्व में पारंपरिक कथक में त्रिवठ जो कि कथक व कविता के बोल और सरगम, तीन विधाओं का संगम प्रस्तुत किया। पारंपरिक कथक और लोक नृत्य का यह फ्यूजन, जो आधुनिकता और परंपरा का अनूठा संगम था। इस आयोजन ने न केवल राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का प्रयास किया, बल्कि दर्शकों को राज्य की विविध और समृद्ध संस्कृति से भी अवगत कराया। यह कार्यक्रम राजस्थान की कला और संस्कृति को सशक्त रूप से प्रदर्शित करने का एक बेहतरीन उदाहरण बनकर उभरा, साथ ही संगीता द्वारा “ऐरी सखी मोरो पिया घार आयो....... ठुमरी का भी प्रदर्शन किया।

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