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मार्बल खदानों के बीच निकाला कोहिनूर, अपनी मेंहनत से बदल दी गांव की तस्वीर,
By Lokjeewan Daily - 04-06-2025

पर्यावरण दिवस विशेष स्टोरी 

पिपलांत्री गांव के पर्यावरणीय परिवर्तन की कहानी

प्रकाश पालीवाल राजसमंद

 राजसमंद। जिले से निकलने वाले मार्बल के ब्लॉक से पर्यावरण का असंतुलन दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। बढ़ते पर्यावरण असंतुलन के बीच यहां मूल प्रकृति को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। बढ़ते पर्यावरण के असंतुलन को देखते हुए सबसे ज्यादा मार्बल का खनन क्षेत्र पिपलांत्री,मोरवड केलवा और झाझर क्षेत्र का नाम सामने आता है। आज से 20 साल पूर्व जब मार्बल का व्यवसाय चरम पर था। हर कोई प्रकृति की परवाह किए बिना धरती का सीना चीर कर मार्बल निकाल रहे थे। इस दौरान गांव के एक व्यक्ति के मन में पीड़ा हुई और अपने गांव की प्रकृति को बचाने का बीड़ा उठाया। जो आगे चलकर देश दुनिया में एक मिशाल के रूप में सामने आया। जी हां हम बात कर रहे हैं पद्मश्री श्याम सुंदर पालीवाल और पिपलांत्री मॉडल की की चर्चा देश, दुनिया में हो रही‌ है।पालीवाल ने  पिपलांत्री गांव मेंअपनी स्वर्गीय बेटी किरण की याद में एक पेड़ लगाकर अभियान की शुरुआत की जो आगे चलकर बेटी और पर्यावरण बचाने का कारवा बन गया । पर्यावरण की रक्षा की नींव पर निर्मित यह पर्यावरण-बेटी बचाओ लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

पिपलांत्री गांव के परिवर्तन की कहानी वर्ष 2005 गांव के तत्कालीन सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल के साथ शुरू हुई।

श्याम सुंदर पालीवाल ने  पिपलांत्री के सरपंच के रूप में अपनी यात्रा शुरू की थी ।
अपनी शुरुआती यात्रा में तीन समस्याओं को सबसे कुशल तरीके से निपटाया। बालिकाओं को बचाना, अधिक पेड़ लगाना और भूजल स्तर को पुनर्जीवित करना था।

माइनिंग पिपलांत्री से पिपलांत्री  मॉडल तक की कहानी

वर्ष 2000 से पहले, पिपलांत्री के आसपास क्षेत्र में मार्बल खदानों का व्यवसाय चरम पर था। बढ़ते मार्बल उधोग के कारण लगभग कोई जंगल और हरियाली की परवाह के बिना विनाश कर रहा था, गांव के आसपास क्षेत्र में मार्बल की खदानों की भरमार थी। खदानों के कारण क्षेत्र के आसपास का जलस्तर 800 , 900 फीट तक नीचे चला गया था और पीने के लिए पानी के लिए काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। गांव में सामान्य बुनियादी ढांचे, सड़क, सिंचाई और कृषि को छोड़कर ग्रामीण मार्बल से जुड़ने लगे। गांव में ग्रामीण संरचना में सन्नाटा पसराने लगा। मार्बल के खदानों से निकलने वाली धूल मिट्टी की ऊपरी सतह को ढक लेती थी, जिससे कृषि की जमीने  बंजर होने लगी । गांव वाले खुद को उजड़ा हुआ महसूस करने लगे थे। गांव की बुजुर्ग महिलाओं ने बताया कि उनके पास चाय या भोजन परोसने के लिए कुछ नहीं था, जबकि पुरुषों को इस बात की चिंता थी कोई भी अपनी बेटियों की शादी गांव में नहीं करेगा।जब पिपलांत्री अपनी बर्बादी का सामना कर रहा था, तब राजस्थान के बाकी इलाकों में  लड़किया पैदा होना अभिशाप बन गई थी उनको वस्तु के रूप में देखा जा रहा था जिसे कोई नहीं रखना चाहता था। अन्य गांवों के दौरे के दौरान श्याम सुंदर पालीवाल ने पुष्टि की कि कैसे एक लड़की को जन्म से पहले ही मार दिया जाता था। उसे अनाज का एक टुकड़ा खिलाकर मार दिया जाता था, जिससे अंततः उसकी मौत हो जाती थी।
वर्ष 2007 में अपनी 17 वर्षीय बेटी किरण की अकाल मृत्यु का सामना करना पड़ा। इससे पिपलांत्री को बदलने का उनका जुनून और बढ़ गया। अपनी बेटी किरण की मृत्यु के बाद, उन्होंने अपनी बेटी किरण की याद में पहला पेड़ लगाया। इससे पिपलांत्री गांव में क्रांति का विचार आया।
श्याम सुंदर पालीवाल द्वारा अधिक पानी बचाने के लिए अधिक पेड़ लगाने के बारे में जागरूकता फैलाने से हुई। पेड़ लगाने के लिए उन्हें ज़मीन की ज़रूरत थी। लेकिन मार्बल माफियाओं द्वारा फेंके गए कचरे से बंजर ज़मीनों का मुद्दा सामने आया। तभी  पालीवाल ने खदान प्रबंधन का मुद्दा अपने हाथों में ले लिया। खदान ने पहले पंचायतों से 40 हेक्टेयर गांव की आम संपत्ति पर कचरा डालने की अनुमति प्राप्त की थी, जिसके बदले में पंचायत क्षेत्र से निकाले गए किसी भी पदार्थ पर एक छोटी (1%) रॉयल्टी मिलती थी।
श्याम सुंदर पालीवाल ने गांव के सुधार के लिए सरकार द्वारा तैयार किए गए विभिन्न संसाधनों, योजनाओं और कार्यक्रमों का उपयोग किया। पानी की पाइपें बिछाई गईं, शिक्षा संस्थान बनाए गए, उच्च शिक्षा अधिक व्यवहार्य हो गई और बुनियादी ढांचे और स्वच्छता का विकास किया जा रहा था।

111 के आंकड़े में बदल दी पिपलांत्री गांव की दिशा

श्याम सुंदर पालीवाल ने पिपलांत्री पंचायत की 40 सेक्टर जमीन पर एक अभियान शुरू किया। गांव की हर बेटी के जन्म पर 111 पेड़ लगाने अभियान शुरू किया जो आगे चलकर पिपलांत्री गांव बदलाव का चेहरा बन गया है। इस अभियान की शुरुआत उन्होंने अपनी स्वर्गीय बेटी किरण के नाम 111 पौधे लगाकर की। बेटियों को बोझ मानने से लेकर एक बेटी के जन्म पर जश्न मनाने तक, पिपलांत्री ने हरियाली की ओर कदम बढ़ाया है। पालीवाल ने एक पेड़ लगाने के विचार को बढ़ाकर 111 पेड़ लगाने का लक्ष्य रखा है। जब गांव के लोगों ने मिलकर पेड़ लगाने का फैसला किया, तो पूरे गांव में सामाजिक बदलाव की शुरुआत हो गई। 

एक लड़की के जन्म के बाद रक्षाबंधन के पर्व पर जन्मी हुई बेटी के मां-बाप बेटियों को कृष्ण की तरह टोकरियों में सम्मान के साथ ले जाया जाता है। वैसे तो पेड़ लगाने का काम पूरे साल चलता है, लेकिन रक्षाबंधन पर एक खास समारोह आयोजित किया जाता है। यहाँ सभी ग्रामीण अपनी बेटियों के नाम पर पेड़ लगाने के लिए एक साथ आते हैं। सभी तरह के पेड़ लगाए जाते हैं जैसे नीम, पीपल, आंवला, शीशम, आंवला, बांस और एलोवेरा आदि।

बेटी के नाम से लगाए गए 111 पेड़ की देखभाल बेटी के परिवार के सदस्य करते हैं। पेड़ों की तब तक देखभाल करनी होती है जब तक वे फलदार न हो जाएं। रक्षा बंधन एक ऐसा त्यौहार है जिसमें लड़कियाँ पेड़ों को राखी (एक पवित्र धागा) बांधती हैं जो भाई-बहन के रूप में असीम प्रेम और सुरक्षा का प्रतीक है।
पर्यावरण प्रेमी श्याम सुंदर पालीवाल की पहल के करण पिपलांत्री गांव में चार लाख से अधिक पेड़ लगाए जा चुके हैं। वर्ष 2000 में जलस्तर 800 से 900 फीट नीचे था वह आज के समय में 40 से 50 फीट तक आ गया है। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर पद्मश्री श्याम सुंदर पालीवाल ने बताया कि सरकारें पर्यावरण को लेकर योजनाएं बनाती है यह योजनाएं वर्ष पर्यंत चलनी चाहिए। ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ रहे पर्यावरण असंतुलन को बनाए रखने के लिए गांव का पानी गांव में रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि विकास के नाम पर हो रहे पर्यावरण नुकसान की भरपाई अगले चरण में होनी चाहिए नहीं तो आने वाले कुछ वर्षों में पर्यावरण जलवायु परिवर्तन का असर देखने को मिलेगा। श्याम सुंदर पालीवाल की पिपलांत्री गांव और आसपास के क्षेत्र में किए गए पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के कामों को लेकर भारत सरकार ने वर्ष 2021 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया जो राजसमंद के लिए गौरव की बात है।

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