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नई दिल्ली । अगस्त के अंत में अफगानिस्तान के दक्षिण-पूर्वी भागों में आए भूकंप के तुरंत बाद नई दिल्ली की ओर से सहायता सामग्री भिजवाई गई।
हालांकि भारत ने काबुल में तालिबान शासकों को मान्यता नहीं दी है, फिर भी उसने इस संकट के समय आम लोगों को सहायता पहुंचाने की कोशिश जारी रखी है।
तालिबान के साथ भारत का बढ़ता जुड़ाव 'आइडियोलॉजिकल अलाइंमेंट' का मामला नहीं है, बल्कि भू-राजनीतिक आवश्यकता का मामला है। अगस्त 2021 में तालिबान सत्ता में लौटा। इसके बाद से ही नई दिल्ली ने अपने दृष्टिकोण को पूरी तरह तटस्थ नहीं रखा बल्कि काफी ऐहतियात के साथ कूटनीति को आकार दिया है।
तालिबान के साथ भारत का जुड़ाव कई रणनीतिक अनिवार्यताओं से प्रेरित है। एक स्थिर अफगान शासन पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों को सुरक्षित पनाहगाहों से वंचित करने में मदद कर सकता है, जिससे भारत की सीमा सुरक्षा मजबूत होगी।
अफगानिस्तान मध्य एशिया और चाबहार बंदरगाह गलियारे के लिए एक महत्वपूर्ण सेतु के रूप में भी कार्य करता है, जो नई दिल्ली को व्यापार और ऊर्जा संसाधनों के लिए वैकल्पिक पहुंच प्रदान करता है।
संयोग से, इस वर्ष मार्च में पेश की गई एक संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट में अफगानिस्तान में महिलाओं और बच्चों के कल्याण के उद्देश्य से परियोजनाओं और कार्यक्रमों की आवश्यकता पर जोर दिया गया था।
इसमें बताया गया है कि बजट अनुमान (बीई) 2024-25 के दौरान 'अफगानिस्तान को सहायता' के लिए 200 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था, लेकिन संशोधित अनुमान (आरई) चरण में इसे संशोधित 50 करोड़ रुपये कर दिया गया।
इसके बाद बीई 2025-26 में इसे बढ़ाकर 100 करोड़ रुपये कर दिया गया।
विदेश मंत्रालय के अनुसार, अगस्त 2021 से अफगानिस्तान को बजटीय आवंटन मुख्य रूप से खाद्य सुरक्षा, दवाओं और आपातकालीन आपूर्ति के संदर्भ में देश को स्थिर करने के उद्देश्य से किया गया था।
रिपोर्ट में मंत्रालय के हवाले से कहा गया है कि अब जबकि ये प्रयास फलदायी रहे हैं और इन क्षेत्रों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है तो चालू मानवीय सहायता के अलावा विकास सहयोग परियोजनाओं पर भी विचार करने का निर्णय लिया गया है।
इससे पहले, भारत ने 2021 से पहले ही बांधों, अस्पतालों और शिक्षा के लिए कुल 3 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया था। तालिबान कई निर्माण परियोजनाओं में नई दिल्ली की मदद मांग रहा है।
नई दिल्ली को जमीनी रास्ते से लोगों और सामग्री को ले जाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है क्योंकि यह पाकिस्तान से होकर गुजरता है, जहां अक्सर नौकरशाही और राजनीतिक बाधाएं खड़ी हो जाती हैं। इसके अलावा, अफगान-पाक सीमा पर झड़पों के कारण प्रवेश बिंदु पर लंबा इंतजार करना पड़ता है।
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