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उत्तर प्रदेश के उपचुनाव के बीच समाजवादी पार्टी (सपा) के लिए राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं, और इस माहौल में पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव की रामपुर में आजम खान के परिवार से मुलाकात के सियासी मायने गहरे होते जा रहे हैं। इस मुलाकात को लेकर चर्चा हो रही है कि सपा इस अवसर का इस्तेमाल मुस्लिम वोट बैंक को एकजुट करने के लिए कर सकती है, खासकर उन सीटों पर जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। उपचुनाव में मुस्लिम वोटों का बिखराव सपा के लिए भारी पड़ सकता है, और ऐसे में आजम खान का परिवार सपा के लिए राजनीतिक समीकरण को साधने की एक अहम कड़ी बन सकता है।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव 11 अक्टूबर को मुरादाबाद की कुंदरकी विधानसभा सीट पर चुनावी रैली करने के बाद सीधे रामपुर जाएंगे, जहां वे जौहर यूनिवर्सिटी के पास स्थित आजम खान के घर पर उनके परिवार से मिलेंगे। अखिलेश यादव आजम खान की पत्नी तजीन फात्मा, उनके बेटे अब्दुल्ला आजम और परिवार के अन्य सदस्यों से मुलाकात करेंगे। पिछले कुछ समय से, सपा ने आजम खान के मामले में कोई खास सार्वजनिक कदम नहीं उठाया था, लेकिन अब जब उपचुनाव की स्थिति विकट हो गई है, तो अखिलेश यादव आजम खान के परिवार से मिलकर मुस्लिम समुदाय के बीच अपनी सियासी पकड़ को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।
आजम खान, जो सपा के कद्दावर मुस्लिम नेता माने जाते हैं, पिछले एक साल से सीतापुर जेल में बंद हैं। उनके बेटे अब्दुल्ला आजम भी जेल में हैं, और उनकी पत्नी तजीन फात्मा जमानत पर बाहर आई हैं। पिछले साल से सपा का कोई बड़ा नेता आजम खान या उनके परिवार से मिलने नहीं गया, लेकिन उपचुनाव के दरम्यान अखिलेश यादव ने यह कदम उठाया है, जो मुस्लिम वोटों के बंटवारे के खतरे को देखते हुए राजनीतिक मजबूरी भी बन गया है। इस मुलाकात को लेकर सियासी हलकों में यह भी चर्चा है कि अखिलेश यादव मुस्लिम वोट बैंक को एकजुट रखने के लिए यह प्रयास कर रहे हैं, जो सपा के लिए उपचुनाव में बेहद महत्वपूर्ण है।
उत्तर प्रदेश में इस बार कुल नौ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, जिनमें से छह सीटें मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हैं। इनमें से तीन सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हैं, जहां पर आजम खान का प्रभाव रहा है। खासकर कुंदरकी सीट पर सपा के लिए चुनौती बड़ी है, क्योंकि यहां मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में हैं और मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारने वाली कई अन्य पार्टियों ने सपा के सामने एक बड़ा सियासी संकट खड़ा कर दिया है। बसपा से लेकर एआईएमआईएम और चंद्रशेखर की पार्टी तक ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर वोटों के विभाजन का खतरा पैदा कर दिया है।
मुस्लिम वोटों का बिखराव सपा के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है। अगर वोट बंटते हैं, तो इसका सीधा असर सपा की चुनावी संभावनाओं पर पड़ेगा, खासकर उन सीटों पर जहां मुस्लिम समुदाय की निर्णायक भूमिका है। कुंदरकी, सीसामऊ और मीरापुर जैसे क्षेत्रों में सपा ने मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए हैं, और इन सीटों पर मुस्लिम वोटों के बिना जीतना लगभग असंभव है। पिछले चुनावों में मुस्लिम वोटों के सहारे सपा ने इन सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन इस बार समीकरण बदल गए हैं।
सपा के लिए यह उपचुनाव राजनीतिक सियासत में ध्रुवीकरण के बीच एक बड़ा अवसर भी बन गया है। मुस्लिम समुदाय की नाराजगी को देखते हुए अखिलेश यादव अब इस समुदाय को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने आजम खान के परिवार से मुलाकात करने का निर्णय लिया है, ताकि मुस्लिम वोटों को एकजुट किया जा सके और चुनाव में सपा की स्थिति मजबूत हो सके। खासतौर पर कुंदरकी और सीसामऊ जैसी सीटों पर, जहां मुस्लिम समुदाय की बड़ी संख्या है, सपा के लिए मुस्लिम वोटों का एकजुट होना बेहद जरूरी हो गया है।
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