It is recommended that you update your browser to the latest browser to view this page.
Please update to continue or install another browser.
Update Google Chromeब्रेकिंग न्यूज़
देश के इतिहास में दो वीरांगनाओं के नाम से जाना जाता है. पहली देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपने साहस और पराक्रम का परिचय देने वाली ब्रिटिश शासकों से लोहा लेने वाली बुंदेलखंड की शान झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और दूसरी देश को आत्मनिर्भरता का मार्ग दिखाने वाली प्रथम व अब तक की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी. एक ही दिन जन्मी इन दोनों महान हस्तियों का योगदान देश के लिए अतुलनीय है लेकिन इनकी जयंती का राजनीतिकरण कुछ ऐसा हुआ कि आज इंदिरा जी की जयंती को तो वांछित महत्व दिया जाता है किन्तु रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान किताबों तक ही सीमित मालूम पड़ते हैं. ऐसे में अब समय बदलाव का है. बदलाव स्कूली किताबों में, महापुरुषों के प्रति जागरूकता में, महात्माओं की त्याग-तपस्या के विस्तारित ज्ञान में. यह समय है इतिहास की किताबों में कुछ और पन्ने जोड़ने का. उन अनसुने तथ्यों को शामिल करने का जो इतने सालों तक किसी भी कारण से छिपाये गए. ऐसा नहीं है कि हमसे अब तक झूठ बोला गया लेकिन सच जरूर छिपाया गया.
यदि पंडित नेहरू की जयंती बाल दिवस के रूप में मनाई जा सकती है तो अद्वैत वेदांत के प्रणेता, संस्कृत के विद्वान, उपनिषद व्याख्याता और सनातन धर्म सुधारक आदि शंकराचार्य की जयंती पर सिर्फ नमन कर के बात क्यों ख़त्म हो जाती है! सोचने वाली बात है कि स्वामी दयानन्द, स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों को हमने कुछ अध्यायों में ही पढ़ा हैं लेकिन उनके व्यापक ज्ञान को जो प्रचार-प्रसार देश हित के लिए मिलना चाहिए था वो अभी तक नहीं मिला. इसी प्रकार देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाली वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई भी सिर्फ इतिहास की किताबों तक ही सीमित दिखती हैं. क्या उनके झांसी की रक्षा, नेतृत्वक्षमता, महिला सशक्तिकरण और महिलाओं को केवल बच्चे पोषित करने तक सीमित न रखकर तलवार उठाने और लड़ने की इच्छा शक्ति पैदा करने को सिर्फ सोशल मीडिया पोस्ट तक ही सीमित रखा जाना सही है?
हम आज बुंदेलखंड को पृथक राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग देख रहे हैं. बुंदेलखंड को वीरों की धरती कहा गया है, जिनका योगदान न केवल इस क्षेत्र तक बल्कि देशभर के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. लेकिन इसे समझने और समझने वाले कितने हैं. निश्चित ही ऐसे देश या प्रदेश के लोग जो अपने इतिहास को, इतिहास में शामिल लोगों को ही भलीभांति नहीं जानते वह उस देश या प्रदेश से भावनात्मक रूप से कैसे जुड़ेंगे? मैं व्यक्तिगत रूप से बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाये जाने का पक्षधर हूँ और बुंदेलखंड 24x7 के माध्यम से स्वतंत्र बुंदेलखंड, सफल बुंदेलखंड का आह्वान कर रहा हूँ. यह प्रयास छोटा हो सकता है लेकिन दूरगामी परिणाम देने वाला है. इस लेख के माध्यम से मैं केंद्र सरकार से अपील भी करना चाहता हूँ कि बुंदेलखंड को पृथक राज्य बनाने के साथ-साथ बुंदेलखंड के वीर योद्धाओं की गाथाओं को राष्ट्रीय पटल पर पहचान दिलाने की गुजारिश भी करता हूँ. इस क्षेत्र को मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के पिछले हिस्सों में फैले हुए क्षेत्र के रूप में नहीं बल्कि शुरूआती क्षेत्र और खुद में धन संपन्न क्षेत्र के रूप में पहचान मिले.
अगर किसी को लॉरेंस बिश्नोई गैंग की तरफ से धमकी मिलती है, तो करणी . . .
2024-11-19 15:09:56
राजस्थान में एसआई भर्ती 2021 पर हाईकोर्ट की रोक की वजह . . .
2024-11-19 13:00:14
गोविंद गुरू जनजातीय क्षेत्रीय विकास योजना से आदिवासियों का होगा क . . .
2024-11-16 12:49:05
लैंड पूलिंग योजना : जेडीए ने अचरावाला और शिवदासपुरा के किसानों से . . .
2024-11-19 15:07:20
फर्जी दस्तावेज़ों की दुनिया का शातिर खिलाड़ी करण गुप्ता कोटा से ह . . .
2024-11-19 13:03:00
राजस्थानी धुनों पर नाचीं जयपुर हेरिटेज की मेयर कुसुम यादव . . .
2024-11-19 12:42:19