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डॉ. मनमोहन सिंह, भारत के 14वें प्रधानमंत्री ने अपने कार्यकाल में भारत की विदेश नीति को आर्थिक विकास से जोड़ने का एक अभूतपूर्व दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उनकी नीतियों ने भारत को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दिलाई और आर्थिक विकास के साथ-साथ कूटनीतिक संबंधों को भी सुदृढ़ किया।
डॉ. सिंह ने 1991 में वित्त मंत्री के रूप में आर्थिक उदारीकरण की नींव रखी, जिसने भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था से जोड़ा। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद यह दृष्टिकोण और अधिक व्यापक हो गया। डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत और अमेरिका के बीच संबंध नए आयाम तक पहुंचे। साल 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौता इसकी एक प्रमुख मिसाल है।
यह समझौता न केवल ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण था, बल्कि इससे भारत की वैश्विक स्थिति भी मजबूत हुई। डॉ. सिंह ने “लुक ईस्ट पॉलिसी” को मजबूत किया, जिसके तहत भारत ने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों (आसियान) के साथ व्यापारिक और कूटनीतिक संबंध बढ़ाए। इन नीतियों ने भारत को एशिया में एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभारा।
डॉ. सिंह के कार्यकाल में भारत और यूरोपीय संघ के बीच व्यापारिक समझौते और कूटनीतिक वार्ता तेज हुईं। ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों के साथ भारत के संबंधों में नई ऊर्जा आई। डॉ. मनमोहन सिंह ने ऊर्जा सुरक्षा को विदेश नीति का एक अहम हिस्सा बनाया। उन्होंने ईरान, रूस, और खाड़ी देशों के साथ संबंधों को मजबूत किया। ऊर्जा संसाधनों की सुनिश्चितता के लिए बहुपक्षीय मंचों पर भारत की स्थिति को सशक्त बनाया।
डॉ. सिंह के नेतृत्व में भारत ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) और जी-20 जैसे मंचों पर सक्रिय भूमिका निभाने लगा। उन्होंने विकासशील देशों के लिए एक मजबूत आवाज उठाई और वैश्विक आर्थिक मामलों में भारत की उपस्थिति को बढ़ाया।
डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में भारत ने संयमित और स्थिर कूटनीति का प्रदर्शन किया। उनकी विदेश नीति में आर्थिक विकास के साथ संतुलन और स्थिरता पर जोर दिया गया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए जोरदार वकालत की, जिससे भारत की वैश्विक स्थिति को बल मिला।
डॉ. सिंह ने पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों के साथ व्यापार और कूटनीतिक संबंधों को सुधारने का प्रयास किया। हालांकि डॉ. सिंह की नीतियां प्रभावशाली थीं, लेकिन उन्हें कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा। चीन के साथ व्यापार घाटा और पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक गतिरोध उनकी विदेश नीति के कमजोर पक्ष माने गए।
डॉ. मनमोहन सिंह ने विदेश नीति और आर्थिक विकास के बीच एक अद्वितीय समन्वय स्थापित किया। उनकी दूरदृष्टि और नीतियों ने भारत को वैश्विक मंच पर एक सशक्त पहचान दिलाई। वे केवल एक अर्थशास्त्री ही नहीं, बल्कि एक कुशल कूटनीतिज्ञ भी थे, जिन्होंने भारत को 21वीं सदी में वैश्विक शक्ति के रूप में उभरने की नींव प्रदान की।
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