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जयपुर। राजस्थान रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) ने फ्लैट के कब्जे में देरी के एक मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। रेरा के Adjudicating Officer आर.एस. कुलहरी ने शिकायतकर्ता रेणु सिंघल के पक्ष में इंडियन रेलवे वेलफेयर ऑर्गनाइजेशन को हर्जाने के तौर पर भारी मुआवजा देने का निर्देश दिया है। यह फैसला रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 की धारा 31 के तहत दायर शिकायत पर आया है, जिसमें शिकायतकर्ता ने मुआवजे की मांग की थी। मामला रेल विहार जयपुर फेज-III परियोजना से संबंधित है, जहाँ शिकायतकर्ता रेणु सिंघल ने 10 नवंबर 2014 को 43,48,000 रुपए (प्लस टैक्स) में एक फ्लैट बुक किया था, जिसकी कुल लागत 47 लाख रुपए से अधिक हो गई थी। शिकायतकर्ता ने विभिन्न तिथियों पर कुल 45,08,900 रुपए जमा किए थे। बिल्डर ने 2019 तक फ्लैट का कब्जा देने का वादा किया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
परेशान होकर, शिकायतकर्ता ने 11 अक्टूबर 2021 को परियोजना से हटने और ब्याज सहित राशि वापसी का अनुरोध किया। राशि वापस नहीं मिलने पर रेणु सिंघल ने रेरा के समक्ष शिकायत दर्ज की, जिसने 19 अप्रैल 2023 के आदेश से बिल्डर को पूरी जमा राशि वापस करने का निर्देश दिया था। हालाँकि, अथॉरिटी ने ब्याज की अनुमति नहीं दी क्योंकि कोई बिक्री समझौता निष्पादित नहीं किया गया था।
इसके बाद, शिकायतकर्ता ने राजस्थान रियल एस्टेट अपीलीय न्यायाधिकरण (REAT) में अपील दायर की। REAT ने 24 सितंबर 2024 के आदेश से बिल्डर को वापसी पत्र की तारीख से लेकर वास्तविक वापसी तक 9.6% प्रति वर्ष की दर से ब्याज का भुगतान करने का निर्देश दिया। वर्तमान शिकायत में, रेणु सिंघल ने प्रत्येक जमा की तारीख से ब्याज के नुकसान, वित्तीय नुकसान, मानसिक पीड़ा, उत्पीड़न, प्रमोटर द्वारा सेवा में कमी और मुकदमेबाजी की लागत के लिए मुआवजे की मांग की थी।
रेरा ने अपने विश्लेषण में पाया कि बिल्डर द्वारा देरी के लिए बताए गए कारण, जैसे कच्चे माल की अनुपलब्धता, एनजीटी/प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरणों द्वारा निर्माण गतिविधियों पर रोक, विमुद्रीकरण और जीएसटी का प्रभाव, तथा कोविड-19 का प्रभाव, संतोषजनक नहीं थे। रेरा ने कहाकि बिल्डर को कच्चे माल की व्यवस्था करनी चाहिए थी और परियोजना को पूरा करने के लिए धन की व्यवस्था करनी चाहिए थी। रेरा ने यह भी माना कि आबंटियों से प्राप्त बड़ी राशि का उपयोग परियोजना के लिए नहीं किया गया और संभवतः इसका दुरुपयोग किया गया।
Adjudicating Officer ने माना कि शिकायतकर्ता को कानून के तहत मुआवजा पाने का अधिकार है। सर्वोच्च न्यायालय के 'एक्सपीरियन डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम सुषमा अशोक शिरूर' मामले के अनुसार, शिकायतकर्ता को उसकी मूल स्थिति में बहाल किया जाना चाहिए। रेरा ने वित्तीय नुकसान, अवसर के नुकसान, मानसिक पीड़ा और मुकदमेबाजी की लागत पर विचार किया। REAAT द्वारा दिए गए 9.30% प्रति वर्ष ब्याज से असंतुष्ट, शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि उसने दोस्तों और रिश्तेदारों से ऋण लेकर धन की व्यवस्था की थी और उसे अधिक ब्याज देना पड़ा था।
रेरा ने पाया कि बाजार में सामान्य न्यूनतम ब्याज दर 12% प्रति वर्ष से अधिक है। इसलिए, रेरा ने जमा की प्रत्येक तारीख से वापसी पत्र की तारीख (10.10.2021) तक 12% प्रति वर्ष साधारण ब्याज के रूप में मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दिया। इसके अतिरिक्त, 11 अक्टूबर 2021 से वापसी की तारीख तक कुल जमा राशि पर 2.5% प्रति वर्ष का अतिरिक्त ब्याज भी मुआवजे के रूप में दिया जाएगा।
मानसिक पीड़ा के लिए 80,000 रुपए और मुकदमेबाजी की लागत के लिए 20,000 रुपए का भी आदेश दिया गया। बिल्डर को 45 दिनों के भीतर आदेश का पालन करना होगा, ऐसा न करने पर देय राशि पर 2% प्रति वर्ष का अतिरिक्त ब्याज देना होगा।
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