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जयपुर: राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से मुलाकात की। इस मुलाकात को राजस्थान में होने वाले उपचुनाव से लेकर जोड़ा जा रहा है। बता दें कि 10 जुलाई को प्रदेश में बजट भी घोषित किया जाएगा। ऐसे में अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या बीजेपी उपचुनाव में वसुंधरा राजे का फायदा लेकर कमबैक करेगी या फिर राजे की पार्टी से दूरियां कायम रहेंगी। जानते हैं भजनलाल और राजे के बीच 1 घंटे आखिर क्या बातचीत हुई। भजनलाल सरकार के कैबिनेट मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीणा के इस्तीफे के बाद भाजपा में गहमागहमी का दौर है। आगामी दिनों में पांच विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं। इससे ठीक पहले डॉ. मीणा के इस्तीफे से पार्टी में खलबली मची हुई है। डॉ. किरोड़ी लाल मीणा के इस्तीफे को वसुंधरा राजे से जोड़कर भी देखा जा रहा है क्योंकि 4 जुलाई को जब इस्तीफे की बात सामने आई। उस दिन डॉ. किरोड़ीलाल मीणा और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती से आशीर्वाद लिया था। दोनों नेताओं की ओर से एक ही दिन में शंकराचार्य से आशीर्वाद लेने की तस्वीरें सामने आई तो नई चर्चाएं शुरू हो गई कि क्या पार्टी में कोई नई खिचड़ी पकने जा रही है।
वसुंधरा से मिलने पहुंचे भजनलाल
रविवार 7 जुलाई को सीएम भजनलाल शर्मा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से मिलने के लिए उनके बंगले पर पहुंचे। मुख्यमंत्री बनने के बाद सीएम भजनलाल शर्मा की पूर्व सीएम राजे से यह दूसरी मुलाकात थी। इससे पहले लोकसभा चुनाव से पूर्व भी जनवरी में सीएम भजनलाल शर्मा राजे से मिलने के लिए उनके बंगले पर पहुंचे थे। रविवार को भजनलाल शर्मा और वसुंधरा राजे के बीच करीब एक घंटे तक दोनों में बातचीत हुई। मुलाकात की वजह आगामी दिनों में होने वाले उपचुनाव को लेकर रणनीति और बजट पर चर्चा करना बताया गया। चूंकि राजे दो बार प्रदेश की सीएम रही हैं। उनके नेतृत्व में लड़े गए चुनावों में दो बार प्रदेश में भाजपा को रिकॉर्ड सीटें मिली थी। उपचुनाव में उन्हें सक्रिय करके पार्टी फायदा लेने की कोशिशें कर रही है।
लोकसभा और विधानसभा चुनाव में दूर रही राजे
नवंबर 2023 में हुए राजस्थान विधानसभा के चुनाव और अप्रैल 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ज्यादा एक्टिव नहीं दिखीं। पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने राजे को कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी। ऐसे में राजे असहज सी रही। राजे के एक्टिव नहीं होने से पार्टी को नुकसान भी भुगतना पड़ा। लोकसभा चुनाव में राजे सिर्फ झालावाड़ तक सीमित रही। पार्टी को 11 सीटें खोनी पड़ी। कई लोगों का कहना है कि अगर राजे लोकसभा चुनाव में एक्टिव रहती तो पार्टी का काफी फायदा मिलता लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अब पांच सीटों पर उपचुनाव हैं तो पार्टी राजे की भागीदारी फिर से बढ़ाने की कोशिश में हैं।
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